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सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781610000000

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सचमुच के पारस

रहीम एक बार पालकी में सैर को जा रहे थे। रास्ते में किसी ने उनके ऊपर लोहे का एक बड़ा टुकड़ा (जिसे किसी-किसी ग्रंथ में गोला और किसी ने पसेरी लिखा है) फेंका। फेंकने वाला धर लिया गया। रहीम ने फेंके गए लोहे के वज़न के बराबर उसे सोना देने का हुक्म दिया। किसी ने पूछा कि हमलावर ने तो आपको मारने का काम किया था आपने क्या सोचकर उसे इनाम दे डाला। रहीम ने कहा, ´´उसने मुझे मारने के लिए नहीं बल्कि मुझे पारस समझकर लोहा फेंका था।´´ उस समय यह मशहूर था कि बादशाह और अमीर पारस होते हैं।

ख़ानख़ानां और तुलसीदास में परस्पर बड़ा स्नेह था। उसी अधिकार से तुलसीदास ने सहायता के लिए एक निर्धन ब्राह्मण को रहीम के पास भेजा जो धनाभाव के कारण अपनी बेटी का विवाह नहीं कर पा रहा था। वह रहीम के पास पहुंचा, अपना हाल बयान किया और तुलसीदास का पत्र दिया जिसमें दोहे की सिर्फ एक पंक्ति लिखी थी-

सुरतिय नरतिय नागतिय, सब चाहत अस होय।

रहीम ने ब्राह्मण को बहुत सा धन दिया और उसी पत्र पर दोहे की दूसरी पंक्ति पूरी कर दी-

गोद लिए हुलसी फिरै, तुलसी सो सुत होय।

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