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सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781610000000

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मोर किसान के पास पहुंचा और उसे समझाया कि उसके लड़के का पैर धोखे से सांप पर पड़ गया था जिस पर सांप ने आव देखा न ताव उसे डस लिया। दुखी स्वर में मोर ने आगे कहा, ´´चाचा, तुम्हारे बेटे और मेरे दोस्त की आत्मा को तभी शांति मिलेगी जब तुम सांप से बदला चुकाओ।´´

दुखी किसान ने गुस्से में कुल्हाड़ी उठाकर प्रतिज्ञा की, ´´मैं अपने बेटे का अंतिम संस्कार तब तक नहीं करूंगा जब तक उस हत्यारे सांप के टुकड़े-टुकड़े नहीं कर डालता।´´

मोर ने पैंतरा बदलते हुए कहा, ´´चाचा, गुस्सा थूक डालिए और सोचिए कि अगर आपने एक ही बार में सांप का काम तमाम कर दिया तो वह तो तर जाएगा, अपने किए का दंड कैसे भुगतेगा? इससे आप सांप की पूंछ काट डालिए जिससे वह जीवन भर तड़पता रहे।´´

किसान ने मोर की बात मान ली और जंगल में जाकर, मोर की निशानदेही पर, सांप को ढूंढ कर उसकी पूंछ उड़ा दी। दुमकटा सांप अपना दर्द दबाए कुल्हाड़ी हिलाते हुए किसान के पीछे-पीछे उसके बाड़े में जा पहुंचा और चार जानवरों को डस कर चंपत हो गया। उनमें से एक जानवर मर गया और तीन बीमार पड़ गए।

किसान ने सोचा कि अगर वह सांप को मार देता है तो उसकी मादा बदला लेगी और इस तरह बदले की आग बढ़ती ही जाएगी। अतः वह दूध और शहद लेकर सांप के पास समझौते के लिए पहुंचा।

शहद चाटकर सांप ने कहा, ´´ठीक है, हमने तुमसे संधि कर ली है जिससे अस्थाई शांति स्थापित हो गई है। इस जंगल में मेरा चिर शत्रु मोर रहता है जिससे मुझे बराबर खतरा बना रहेगा। अब तो राष्ट्रीय पक्षी होने के बाद वह गर्दन और ज्यादा फुलाए रहता है। इसलिए मैं जंगल छोड़कर शहर जा रहा हूं।´´

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