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सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781610000000

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हमारे देश में केवल काली और लाल दो प्रकार की चीटियां होती हैं जबकि पूरे संसार में इनकी चौदह हजार तक प्रजातियां पाई जाती हैं। लगभग इतनी ही अभी खोजी जानी शेष हैं। लाल और काली चीटियों में, मानवों की तरह, वर्ण भेद नहीं होता, वे मिलकर साथ रह लेती हैं। सबसे बड़ी चींटी आस्ट्रेलिया में पाई जाती है जिसकी लम्बाई पांच सेंटीमीटर तक हो सकती है। उसका हरेक डंक किसी को भी चारो खाने चित्त कर सकता है। सबसे छोटी चींटी अपनी आधे मिलीमीटर की लम्बाई से गुजारा करती है। शरीर छोटा होने के कारण सुरक्षा की दृष्टि से इन्हें लाखों के समूह में रहना पड़ता है। एक सामान्य चींटी-समाज में लगभग अस्सी लाख चीटियां होती हैं। इनका निवास-स्थान जमीन के भीतर या बाहर, ऊंची चट्टान या किसी टीले पर होता है।

संसार में युद्ध करने वाली सिर्फ तीन प्रजातियां होती हैं- गोरिल्ला, मानव और चींटी। शेष प्राणी संघर्ष करते हैं। मानवों और चींटियों में एक अन्य समानता यह है कि उनका आचरण मनुष्य के समान होता है। इन्सानों की तरह चीटियों का समाज भी परिवारवाद, धोखाधड़ी और सत्ता की भूख जैसी बुराइयों से ग्रस्त होता है। नए शोध बताते हैं कि राजशाही से जुड़ी नर चीटियां अपने बच्चों को जीन्स के माध्यम से एक विशेष योग्यता प्रदान करती हैं जो उन्हें आगे बढ़ने के लिए क्षमतावान बनाती हैं। यही विशिष्टता आगे जाकर उन्हें रानी बनाने में सहायक होती है। इतना ही नहीं, इस मामले में कामगार चीटियों से भी धोखा किया जाता है। अपने बच्चों को विशेष योग्यता देने के बाद नर चींटियां अपना प्रजनन संबंधी कार्य बंद कर देती हैं या मर जाती हैं ताकि ´विशिष्ट´ बच्चों की संख्या सीमित रहे और कामगारों के बीच यह बात न फैले। यह माना जाता है कि इस बात की जानकारी होने पर कामगारों में विद्रोह फैल सकता है। मनुष्यों की तरह उच्च पदस्थ चींटियां भी अपने परिजनों और परिचितों को आगे बढ़ाने के लिए विशेष प्रयास करती हैं। इसके लिए भ्रष्टाचार और धोखे तक का सहारा लिया जाता है।

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