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गधे को ´वैशाख नंदन´ भी कहा जाता है। इस नामकरण के पीछे खुराफाती लोगों ने एक कहानी गढ़ ली है। कहते हैं वैशाख में गधे का स्वास्थ्य खूब अच्छा हो जाता है। कहानी के अनुसार वैशाख के महीने में मैदानों में घास नहीं के बराबर होती है। उस समय मैदान में छिटपुट उगी घास चरते-चरते गधा मैदान के एक छोर से दूसरे छोर पर पहुंचकर जब पलटकर देखता है तो उसे लगता है कि उसने पूरे मैदान की घास चर ली है। अतः वह मोटा हो जाता है। इसके विपरीत सावन में मैदान घास से आच्छादित होते हैं और गधा जब मैदान देखता है तो सोचता है कि इतना चरने के बाद भी पूरी घास वैसी की वैसी है अर्थात उसने कुछ भी नहीं खा पाया है और इसी सोच में वह दुबला हो जाता है। वास्तव में यह कहानी गधे को मूर्ख सिद्ध करने के लिए गढ़ी गई है। वास्तविकता यह है कि वैशाख में चारे की कमी हो जाने के कारण मालिक को परेशानी से बचाने के लिए गधा अपना शरीर फुलाए रहता है जिससे मालिक समझे उसका स्वास्थ्य ठीक चल रहा है। मेरा दावा है कि वैशाख के दौरान रात में गधे को देखने पर मालूम होगा कि उसका स्वास्थ्य वास्तव में गिरा हुआ है। अपने मालिक की मानसिक शांति के लिए वैशाख में दिन भर शरीर फुलाए रहने पर गधे को कितना कष्ट होता होगा इसकी कल्पना वे लोग नहीं कर सकते जो गधे को मूर्ख समझते हैं।
´गर्दभ´ गधे का सम्मानसूचक नाम है। प्रत्येक व्यक्ति में गर्दभत्व पाया जाता है जो उसकी आयु के स्वर्णिम कालखंड में विद्यमान रहता है। 16 से 25 वर्ष की अवस्था (गधे की नहीं, आदमी की) मस्ती और नासमझी की होती है। ऐसे में कुछ भी मूर्खतापूर्ण कार्य, यहां तक कि प्रेम, करने की छूट होती है। इस कालखंड को ´गदहपच्चीसी´ कहा जाता है।
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