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जीवनी/आत्मकथा >> शेरशाह सूरी

शेरशाह सूरी

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :79
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10546
आईएसबीएन :9781610000000

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अपनी वीरता, अदम्य साहस के बल पर दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा जमाने वाले इस राष्ट्रीय चरित्र की कहानी, पढ़िए-शब्द संख्या 12 हजार...


हुमाऊं के लौटने के दो कारण थे। एक- मलेरिया से सैनिक और विषम जलवायु से घोड़े मर रहे थे। दूसरे- उसका भाई हिंदाल विद्रोह पर उतारू था। उसने अपना राज्याभिषेक करा के स्वयं को राजा घोषित कर दिया। बाबर की मृत्यु 1530 ई. मे ही हो चुकी थी। कामरान भी दिल्ली की ओर चल दिया था। जब दिल्ली पर अधिकार नहीं कर पाया तो वह आगरा की ओर मुड़ा। यह समाचार पाकर हुमाऊं शीघ्रतापूर्वक आगरे की ओर चला। चैसा के निकट रात्रि में उस पर अचानक हमला हुआ। कर्मनाशा नदी पार करने में हजारों घोड़े डूब कर मर गए। स्वयं हुमाऊं का घोड़ा डूब गया और एक भिश्ती ने उसकी रक्षा की। अफगानों के हाथ हरम की स्त्रियों सहित लूट का माल आया। स्त्रियों को सम्मानपूर्वक हुमाऊं के पास पहुंचा दिया गया। इस सफलता के बाद शेरखान ने बादशाह का पूर्ण दायित्य ले लिया।

चैसा की पराजय के बाद हुमाऊं की प्रतिष्ठा को धक्का लगा। अनेक मुग़ल उमरा उसके विरुद्ध हो गए। कामरान लाहौर लौट गया। हुमाऊं कन्नौज की ओर बढ़ा और वह फिर (17-5-1540 को) पराजित हो गया। शेरशाह की प्रभुता स्थापित हो गई। हुमाऊं को अगले 15 वर्ष तक देश से निष्कासित रहना पड़ा। समस्याओं से निपटने के लिए दृढ़ सैन्य शक्ति, असीम उत्साह और सैन्य चातुरी की आवश्यकता होती है। इनका हुमाऊं में नितांत अभाव था।

1540 में हुमाऊं को पराजित कर, काबुल भागने पर मज़बूर करने के बाद शेरशाह ने रिवाड़ी में तोप बनाने का एक कारखाना स्थापित किया। इसके साथ ही उसने वहां पीतल, तांबा तथा धातु के बर्तनों का उद्योग भी स्थापित किया। इस समय तक पुर्तगाली गोवा में अपने पैर जमा चुका थे। पुर्तगाली व्यापारी थे। वे भारतीय राजाओं को यूरोप से लाई विविध वस्तुओं के साथ कुछ यांत्रिक तकनीक भी बेंच रहे थे। हेमू ने इन्ही पुर्तगालियों से तोप बनाने की और बारूद बनाने की तकनीक हासिल की। शेरशाह की सेना के लिए सैनिक असैनिक सामानों के मुख्य आपूर्तिकर्ता होने के नाते हेमू का शेरशाह के राज परिवार से निकट का संबंध बन गया था।

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