जीवनी/आत्मकथा >> शेरशाह सूरी शेरशाह सूरीसुधीर निगम
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अपनी वीरता, अदम्य साहस के बल पर दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा जमाने वाले इस राष्ट्रीय चरित्र की कहानी, पढ़िए-शब्द संख्या 12 हजार...
दान किए धन न घटे
शेरशाह बड़ी धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति था। उसने अनेक मदरसे और मस्जिदें बनवाईं । इमामों का भ्रष्टाचार रोकने के लिए उन्हें मस्जिदों के गुजारे के लिए न तो धन दिया और न जागीरें दीं। इसके बजाय उसने विशेष मुंशियों की नियुक्ति की जिन्हें मस्जिदों के इंतजामात सौंपे गए।
शेरशाह सारे दिन दान देने, वृत्तियां देने और उपाधियों के वितरण में लगा रहता था। हिन्दुस्तान का तख्त पाने में उसकी दानवृत्ति ने उसकी बड़ी सहायता की। जब कभी उसके सैनिक आकस्मिक आपत्ति के कारण असहाय हो जाते तो वह उन्हें हर प्रकार की सहायता देता। अंधे, लूले, लंगड़े, असहाय, दीन-दुखी सभी उससे सहायता पाते। विद्यार्थियों और साहित्यकारों को वह बड़ा आर्थिक अनुदान देता था। परंतु दान देने में वह इस बात का ध्यान रखता कि सुपात्र को ही सहायता मिले।
शेरशाह अफगानों का बड़ा सम्मान करता था। वह भूला नहीं था कि सुल्तान बहलोल लोदी के आवाहन पर ही उसके पूर्वज हिन्दुस्तान आए थे। अतः वह बहलोल व सिकंदर लोदी का बहुत कृतज्ञ था। अब उसकी स्वयं की सेना में आने वाला प्रत्येक अफगान अप्रत्याशित धन पाता था। धन देते समय वह कहता, ‘‘हिन्दुस्तान के राज्य का यह तुम्हारा हिस्सा है। तुम इसे लेने हर साल मेरे पास आया करो। रोह (अफगानिस्तान में उसके पुरखों का पूर्व स्थान) में रहने वाले उसके परिवार के सूर सरदारों के पास वह प्रतिवर्ष अपार धनराशि भेजा करता था। कहा जाता है कि उसके शासन काल में रोह अथवा हिन्दुस्तान में रहने वाले किसी अफगान के पास धन का अभाव न था। पूर्व सुल्तानों बहलोल और सिकंदर लोदी द्वारा दी गई वृत्तियां शेरशाह ने जारी रखीं।
शेरशाह का भोजनालय बड़ा विशाल था जिसमें कई हजार सैनिक व कर्मचारी एक साथ भोजन करते थे। शेरशाह का यह आदेश था कि कोई भी भूखा सैनिक, किसान, फकीर उसके भोजनालय में निःशुल्क भोजन कर सकता था। उसने कई स्थानों पर शाही भोजनालय स्थापित कर रखे थे। जहां प्रतिदिन निर्धनों को भोजन दिया जाता था। भोजनालय का दैनिक व्यय 500 अशर्फी (स्वर्ण सिक्का) था।
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