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जीवनी/आत्मकथा >> शेरशाह सूरी

शेरशाह सूरी

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :79
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10546
आईएसबीएन :9781610000000

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अपनी वीरता, अदम्य साहस के बल पर दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा जमाने वाले इस राष्ट्रीय चरित्र की कहानी, पढ़िए-शब्द संख्या 12 हजार...


पूरनमल ने बताया, ‘‘वह दुर्ग का शासक नहीं है और दुर्ग में कोई मुसलमान परिवार या लड़कियां नहीं हैं। आपके आदेश को राजा के पास ले जाऊंगा। वह जो उत्तर देगा आपको बताऊंगा।’’

पूरनमल ने संधि का प्रस्ताव किया जिसे शेरशाह ने मान लिया। किंतु जब पूरनमल किला खाली करके परिवार सहित कुछ ही दूर गया था कि विश्वासघाती स्वभाव के अनुरूप शेरशाह ने रात में राजपूतों पर हमला करके नरसंहार कर डाला। राजपूतानियों ने जौहर कर लिया और राजपूत आखिरी दम तक लड़ते हुए मारे गए।

ऐसा ही नरसंहार सिकंदर ने 326 ई.पू. में किया था। कोफेन और सिंध नदी के मध्य के इलाके में स्थित अश्वकों की राजधानी मसगा (मसकावती) पर जब सिकंदर ने आक्रमण किया तो अश्वकों ने कड़ा मुकाबला किया। मसगा का दुर्ग अत्यंत दृढ़ था। भयंकर युद्ध हुआ जिसमें स्त्रियों ने भी भाग लिया। अचानक अश्वकों का सेनापति मारा गया। सिकंदर भी घायल हुआ। अश्वकों से आत्मसमर्पण करके नगर से चले जाने की संधि हुई। किला खाली कर दिया गया। रात में वे शिवरों में ठहरे। दूसरे दिन सुबह जाना था। आधी रात के बाद सिकंदर ने सोए हुए व्यक्तियों पर अचानक हमला कर दिया और एक-एक को, विशेषकर औरतों को, जिन्होंने युद्ध में भाग लिया था, चुन-चुन कर मार डाला गया।

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