जीवनी/आत्मकथा >> शेरशाह सूरी शेरशाह सूरीसुधीर निगम
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अपनी वीरता, अदम्य साहस के बल पर दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा जमाने वाले इस राष्ट्रीय चरित्र की कहानी, पढ़िए-शब्द संख्या 12 हजार...
मालवा से लौटते समय शेरशाह रणथंमौर होकर गुजरा और वहां के किले का आधिपत्य स्वीकार किया। अपने सबसे बडे़ पुत्र आदिल खान को किले का दायित्व सौंपा।
मार्च 1543 में शेरशाह ने रायसीन पर चढ़ाई कर दी। शेरशाह जानता था कि जब तक रायसीन पर कब्जा न कर लिया जाए तब तक मालवा विजय अधूरी रहेगी। शासक पूरनमल पहले ही अधीनता स्वीकार कर चुका था, फिर इस चढ़ाई का कोई तो बहाना होना चाहिए था। यह कहा गया कि आगरा के मुल्लाओं ने यह शिकायत की है कि चंदेरी में पूरनमल मुसलमान लड़कियों को बंदी बनाकर उन्हें नर्तकियां बना रहा है। शेरशाह ने पूरे लाव-लश्कर के साथ जाकर रायसेन दुर्ग घेर लिया। पूरनमल ने 600 हाथी बाहर भेजे, पर स्वयं नहीं आया। बहरहाल किले पर आक्रमण रोक दिया गया।
अगले दिन शेरशाह ने तमाम उपलब्ध पीतल एकत्र कर उनके गोले ढलवाए। फिर गोलों से एक साथ दुर्ग की दीवार पर प्रहार किया गया। दुर्ग की दीवारें जर्जर हो गईं। पूरनमल कुछ महीने प्रतीक्षा करता रहा पर घेरा नहीं उठा। छह महीने बाद वह स्वयं दुर्ग से बाहर आया और शेरशाह के सामने समर्पण कर दिया।
शेरशाह ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें क्षमा करने और बनारस का सूबेदार बनाने को तैयार हूँ पर शर्त यह है कि जिन मुसलमान लड़कियों को या उनके परिवारों को बंदी बना रखा है उन्हें फौरन छोड़ दो।
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