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उपयोगी हिंदी व्याकरण

भारतीय साहित्य संग्रह

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 12546
आईएसबीएन :1234567890

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हिंदी के व्याकरण को अधिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक

प्रेरणार्थक रचना


सामाजिक व्यवहार में कभी-कभी ऐसी स्थितियाँ आ जाती हैं कि कोई प्राणी क किसी क्रिया/प्रक्रिया विशेष को करने में असमर्थ या लगभग असमर्थ हो जाता है। वह असमर्थता इस कारण हो सकती है – (1) क को क्रिया करने की इच्छा नहीं है, (2) उपयुक्त साधन-सामग्री-क्रिया कौशल नहीं है, (3) भैतिक, शारीरिक, मानसिक व भावात्मक माहौल ऐसा नहीं है कि क उसे कर सके। ऐसी स्थिति में कोई दूसरा ख ऐसा करता है कि क कर सके। यह प्रेरणाभाव है। जैसे – आप कड़वी दवा नहीं पीना चाहते हैं, माँ या तो समझा बुझा कर दवा पिला देगी या जबर्दस्ती मुँह में डालकर। यदि माँ जोर-जबर्दस्ती करने लायक नहीं है; तो आपके बड़े भाई को इस कार्य में लगा सकती है। इस प्रकार प्रेरणार्थक के दो भेद होते हैं:

1. प्रथम प्रेरणार्थक: जब कर्ता क्रिया तो करता है, किंत एक प्रेरक कर्ता भी होता है जो क्रिया निष्पादन का प्रेरक या क्रिया निष्पादन की पूरी व्यवस्था करने वाला भी होता है। उदाहरण – माँ लड़के को दवाई पिलाती है।

2. द्वितीय प्रेरणार्थक: जब उपरिकथित प्रेरक (प्रेरक एक) एक भिन्न व्यक्ति (प्रेरक दो) को प्रेरणकार्य करने के लिए नियुक्त करता है और प्रेरक दो क से कार्य करवाता है। ये स्थितियाँ नीचे चित्र में भी दी गई हैं: उदाहरण – माँ अपने बड़े बेटे से लड़के को दवाई पिलवाती है।




सकर्मक
लड़का दवाई पीता है


प्रेरणार्थक एक माँ लड़का दवाई पीता है
प्रेरणार्थ दो माँ --> मध्यवर्ती व्यक्ति
लड़का दवाई पीता है


सकर्मक: लड़का दवाई पीता है।

प्रेरणार्थक एक: माँ लड़के को दवाई पिलाती है। (क्रियाकर्ता के साथ को और क्रिया प्रेरणार्थ रूप)

प्रेरणार्थक दो: माँ अपने बड़े बेटे से लड़के को दवाई पिलवाती है। (क्रियाकर्ता के साथ को प्रेरक दो के साथ से क्रिया का प्रेरणार्थक दो रूप)

प्रेरणार्थक धातुओं की रचना प्रक्रिया इस प्रकार है:

वर्ग (1)
           

मूल प्रेरणार्थक एक प्रेरणार्थक दो
करना कराना करवाना
पढ़ना पढ़ाना पढ़वाना
उठना उठाना उठवाना
(-) (-आ) (- वा)


वर्ग (2)


सीना सिलाना सिलवाना
धोना धुलाना धुलवाना
पीना पिलाना पिलवाना
(-) (-ला) (-लवा)


टिप्पणी: धातु के प्रथम दीर्घ ई का इ (पी → पि) हो जाना।
धातु के प्रथम ओ का उ (धो → धु) हो जाना।

वर्ग (3)


जागना जगाना जगवाना
देखना दिखाना दिखवाना
सीखना सिखाना सिखवाना
जोड़ना जुड़ाना जुड़वाना
(-) (- आ) (- वा)


टिप्पणी: धातु के प्रथम दीर्घ आ, ई, ऊ स्वर का ह्रस्व करना। याद रखें कि इस प्रक्रिया में प्रथम “ए/ओ स्वर का इ/उ” होता है।

वर्ग (4)

बेचना बिकवाना बिकवाना
बनाना बनवाना बनवाना
खोलना खुलवाना खुलवाना
(-) (- वा) (- वा)


टिप्पणी: (1) बेच → बिक हो जाता है, आकारांत सकर्मक धातु का ह्रस्वीकरण होता है। अन्य प्रथम स्वरों को ह्रस्वीकरण वर्ग (3) के समान होता है।

(2) आना क्रिया का प्रेरणार्थक रूप भेजना है।

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