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हिंदी के व्याकरण को अधिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक
वाक्य रचना पाठ का परिशिष्ट
परसर्ग
वाक्य रचना में वाक्य के संरचकों को परस्पर-संबद्ध करने में परसर्ग की बहुत
बड़ी भूमिका है। परसर्गों का कारकों के भाव को प्रकट करना एक
महत्वपूर्ण भूमिका है और इस कारण संज्ञा के पाठ में कारकों के साथ
उनका उल्लेख किया गया है; किंतु उनकी अन्य भूमिकाएँ हैं और वे भी कारवत्
महत्वपूर्ण हैं। इस कारण परसर्ग शीर्षक से आवश्यक सूचनाएँ दी जा
रही हैं।
परसर्ग की प्रमुख भूमिकाएँ हैं
1. कारक के भाव को प्रकट करना: जैसे, संप्रदान के साथ को
2. संबंधबोधक अव्ययों में दिए कुछ भावों को प्रकट करना: जैसे, कारण भाव के
प्रकट करने में से
3. कर्म या भाववाच्य की रचना में कर्ता के साथ से
4. अनुभावक कर्ता के साथ को (मोहन को ज्वर है)
5. प्रेरणार्थी संरचना में प्रयोज्यकर्ता के साथ को
6. बाध्यता बोधी संरचना में को
परसर्गों में ने की स्थिति अन्य परसर्गों से भिन्न है, वह कर्ता
मात्र का एक विशेष रचना में चिह्नक है।
इन परसर्गों के प्रमुख उदाहरण आगे दिए जा रहे हैं:
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