मूल्य रहित पुस्तकें >> उपयोगी हिंदी व्याकरण उपयोगी हिंदी व्याकरणभारतीय साहित्य संग्रह
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हिंदी के व्याकरण को अधिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक
इतिहास या स्रोत की दृष्टि से वर्गीकरण
मनुष्य अपनी भाषा के सामान्य जीवन में आने वाले शब्द, अपने माता-पिता तथा
अग्रजों से सीखता है और उसके माता-पिता तथा अग्रजों नें अपने माता-पिता तथा
अग्रजों से सीखा था। इस प्रकार एक बड़ी मात्रा की शब्दावली विशेषतया सामान्य
शब्दावली मनुष्य को विरासत में हिलती है।
इस विरासत के अतिरिक्त मनुष्य को अपने से भिन्न भाषा समुदाय के व्यक्तियों से
संपर्क में ने के कारण नयी शब्दावली मिलती है। जो भाषा समुदाय जितना अधिक
अन्य भाषा समुदाय के संपर्क में गहराई से आता है और एक की सभ्यता-संस्कृति
अन्य की सभ्यता-संस्कृति से प्रभावित होती है, उतना ही अधिक शब्दों का,
विशेषकर वस्तु-साधन-उपकरणों के नामों से आदान-प्रदान होता है। जहाँ दूसरा
भाषा-समुदाय राजनीतिक दृष्टि से शासक के रूप में रहा है (जैसे – भारत में
अरबी-फारसी लोग या अंग्रेज लोग) वहाँ उनके शब्द शासित वर्ग के लोगों को
विवशतापूर्वक सीखने पड़े हैं, खासतौर पर प्रशासन-सेना-न्याय के क्षेत्र के या
शासकों के वैभवपूर्ण जीवन के शब्द।
इसके अतिरिक्त ज्ञान-विज्ञान, उद्योग-धंधे, वाणिज्य-व्यापार,
प्रौद्योगिकी-नवीन यातायात-संचार आदि की संकल्पनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए
मनुष्यों को अपनी प्राचीन भाषाओं का सहारा लेना पड़ा है। उनसे निःसंकोच शब्द
लिए हैं। पुराने अर्थों में या नये अर्थों में। उनके सहारे नए-नए शब्द भी
गढ़े हैं। शुद्ध रूपों को लेकर या संकर विधि द्वारा (मिला-जुला कर)। यह
नवसृजन प्रगति और उन्नति के लिए अत्यावश्यक होता है।
हिंदी भाषी समुदाय को विरासत से प्राकृत-अपभ्रंश से होते हुए संस्कृति शब्द
(इन सोपानों से गुजरने के कारण परिवर्तित रूप में भी) मिले हैं, जिन्हें
तद्भव कहते हैं। विरासत में ही संस्कृत भिन्न भाषा बोलने वाले और समाज के
आधार में स्थित जनजित के लोगों से बड़ी संख्या में शब्द मिले हैं, जिन्हें हम
देशी बोलते हैं। मध्यकाल में मुगल आदि और हाल में अंग्रेजों के शासन काल में
बड़ी मात्रा में नवप्रयोग या नवसृजन किया है और इस दिशा में संस्कृत का ही
आश्रय लिया है — ये तत्सम शब्द हैं। तत्सम शब्दों का प्रयोग इसलिए भी बहुलता
से करना पड़ा, क्योंकि भारत के सभी राज्यों में संस्कृत शब्द सरलता से
समझे-बोले जाते हैं। इस प्रकार हिंदी शब्दावली के चार मुख्य वर्ग हैं — (1)
तत्सम, (2) तद्भव, (3) देशी, (4) विदेशी।
(1) तत्सम शब्द: जो शब्द अपरिवर्तित रूप में संस्कृत से लिए गए हैं
या जिन्हें संस्कृत के मूल शब्दों से संस्कृत के ही प्रत्यय लगाकर नवनिर्मित
किया गया है, वे तत्सम शब्द हैं, जैसे, पुष्प, पुस्तक, बालक, कन्या, विद्या,
साधु, आत्मा, तपस्वी, विद्वान, राजा, पृथ्वी, नेता, ममता, अंहकार, नवीन,
सुंदर, सहसा, नित्य, शनैः शनैः, अकस्मात्। कुछ नवनिर्मित के उदाहरण हैं —
आकाशवाणी, दूरदर्शन, आयुक्त, उत्पादनशील क्रयशक्ति, प्रौद्योगिकी आदि।
संस्कृत ने अपने समय में अन्य भाषाओं से शब्दों का आदान किया था, किंतु आज हम
उन्हें तत्सम ही मानते हैं — केन्द्र, होड़ा, यवन, असुर, पुष्प, नीर, गण,
मर्कट, रात्रि, गंगा, कदली, तांबूल, दीनार, सिंदूर, मुद्रा, तीर आदि।
(2) तद्भव शब्द: संस्कृत के जो शब्द प्राकृत, अपभ्रंश, पुरानी हिंदी
आदि से गुजरने के कारण आज परिवर्तित रूप में मिल रहे हं, वे तद्भव शब्द कहे
जाते हैं। उदाहरणार्थ — सात (< सप्त), साँप (<सर्प), कान (< कर्ण),
मुँह (< मुख), हाथी (< हस्तिन्), गाँव (< ग्राम), काज (< कार्य),
अंधेरा (< अंधकार), खीर (< क्षीर), कुम्हार (< कुंभकार), दूध (<
दुग्ध), नींद (< निद्रा), पीठ (< पृष्ठ), भाई (< भ्रातृ), मोर (<
मयूर), भैंस (< महिषी), दही (< दधि), जीभ (< जिह्वा), जेठ
(<ज्येष्ठ), अटारी (< अट्टालिका) सच (< सत्य), पक्का (< पक्व),
धुआँ (< धूम्र), भीख (< भिक्षा) आदि।
कुछ तद्भव शब्द पुरानी हिंदी के समय में परिवर्तित हुए हैं, जैसे — किशन,
करम, काजर, किरपा, पच्छी, भगत, रतन, परीच्छा आदि।
(3) देशी या देशज शब्ज: देशी या देशज शब्द वे हैं, जिनका स्रोत
संस्कृत नहीं है, किंतु वे भारत में ग्राम्य क्षेत्रों या अथवा जनजातियों में
बोली जाने वाली, संस्कृत से भिन्न भाषा परिवारों के हैं, जैसे — झाड़ू,
टट्टी, पगड़ी, लोटा, झोला, टाँग, ठेठ आदि।
(4) विदेशी शब्द: ये शब्द अरबी-फारसी या अंग्रेजी से प्रमुखतया आए
हैं, क्योंकि भारत में मध्यकाल और आधुनिक काल में काफी समय तक विदेशियों का
राज्य था। शब्दों के उदाहरण हैं:
अरबी-फारसी अल्लाह, आक़ा, आफ़त, क़त्ल, काग़ज,
क़ानून, कैंची, क़ैदी, खून ख़राब, ख़त, ग़रीब, ज़मींदार, जहाज़, ज़िला,
दरोग़ा, फ़कीर, बाजार, बेगम, ब़र्फ, ब़गीचा, सज़ा आदि।
अंग्रेजी आदि अफसर, कालेज, कोर्ट, कर्फ्यू,
टेलीफोन, टिकट, राशन, डॉक्टर, फीस, फुटबाल, नर्स, ट्यूब, टीम, मशीन, मिल,
मोटर, यूनियन, पालिसी, पुलिस, टैक्सी, टोस्ट, मैस, इंजन, कमीशन, कापी,
कालोनी, सिनेमा, स्कूल, स्टाप (बस स्टाप), हैट, पार्टी, डायरी, डिग्री, डेस्क
आदि।
अन्य भाषाओं से आलपीन, आल्मारी, इस्तरी, कनस्तर, कप्तान, गोदाम, नीलाम,
पादरी, संतरा, बालटी, साबुन (पुर्तगाली), काजू, कारतूस, अंग्रेज (फ्राँसीसी),
रिक्शा (जापानी), चाय, लीची (चीनी)।
इन चार प्रमुख स्रोतों के अतिरिक्त नव-निर्माण में, इन विधियों का भी प्रयोग
होता है —
(क) अनुकरणात्मक शब्द — खटखटाना, फड़फड़ाना, फुफकार, ठसक आदि।
(ख) संकर शब्द (दो विभिन्न स्रोतों से आए शब्दों को मिलाकर):
हिंदी और संस्कृत — वर्षगाँठ, माँगपत्र, कपड़ा-उद्योग, पूँजीपति आदि।
हिंदी और विदेशी — किताबघर, घड़ीसाज, थानेदार, बैठकबाज आदि।
संस्कृत और विदेशी — रेलयात्री, योजना कमीशन, कृषि मजदूर, रेडियोतरंग आदि।
अरबी/फ़ारसी और अंग्रेजी — अफसरशाही, बीमापालिसी, पार्टी बाजी आदि
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