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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिव पुराण

शिव पुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


द्विजों के लिये 'नमः शिवाय' के उच्चारण का विधान है। द्विजेतरों के लिये अन्तमें 'नमः' पद के प्रयोग की विधि है अर्थात् वे 'शिवाय नमः' इस मन्त्र का उच्चारण करें। स्त्रियों के लिये भी कहीं-कहीं विधिपूर्वक नमोऽन्त उच्चारण का ही विधान है अर्थात् वे भी  'शिवाय नमः' का ही जप करें। कोई-कोई ऋषि ब्राह्मण की स्त्रियों के लिये नमः पूर्वक शिवाय के जप की अनुमति देते हैं अर्थात् वे  'नमः शिवाय' का जप करें। पंचाक्षर- मन्त्र का पाँच करोड़ जप करके मनुष्य भगवान् सदाशिव के समान हो जाता है। एक, दो, तीन अथवा चार करोड़ का जप करने से क्रमश: ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र तथा महेश्वर का पद प्राप्त होता है। अथवा मन्त्र में जितने अक्षर हैं, उनका पृथक्-पृथक् एक- एक लाख जप करे अथवा समस्त अक्षरों का एक साथ ही जितने अक्षर हों उतने लाख जप करे। इस तरह के जप को शिवपद की प्राप्ति करानेवाला समझना चाहिये। यदि एक हजार दिनों में प्रतिदिन एक सहस्र जप के क्रम से पंचाक्षर मन्त्र का दस लाख जप पूरा कर लिया जाय और प्रतिदिन ब्राह्मण-भोजन कराया जाय तो उस मन्त्र से अभीष्ट कार्य की सिद्धि होने लगती है। ब्राह्मण को चाहिये कि वह प्रतिदिन प्रातःकाल एक हजार आठ बार गायत्री का जप करे। ऐसा होनेपर गायत्री क्रमशः शिव का पद प्रदान करनेवाली होती है। वेदमन्त्रों और वैदिक सूक्तों का भी नियमपूर्वक जप करना चाहिये। वेदों का पारायण भी शिवपद की प्राप्ति करानेवाला है, ऐसा जानना चाहिये। अन्यान्य जो बहुत-से मन्त्र हैं, उनका भी जितने अक्षर हों, उतने लाख जप करे। इस प्रकार जो यथाशक्ति जप करता है, वह क्रमश. शिवपद (मोक्ष) प्राप्त कर लेता है। अपनी रुचि के अनुसार किसी एक मन्त्र को अपनाकर मृत्युपर्यन्त प्रतिदिन उसका जप करना चाहिये अथवा  ' ओम् (ॐ)' इस मन्त्र का प्रतिदिन एक सहस्र जप करना चाहिये। ऐसा करने पर भगवान् शिव की आज्ञा से सम्पूर्ण मनोरथों की सिद्धि होती है।

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