गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिव पुराण शिव पुराणहनुमानप्रसाद पोद्दार
|
0 |
भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
पृथ्वी आदि से निर्मित देवप्रतिमाओं के पूजन की विधि, उनके लिये नैवेद्य का विचार, पूजन के विभिन उपचारों का फल, विशेष मास, वार, तिथि एवं नक्षत्रों के योग में पूजन का विशेष फल तथा लिंग के वैज्ञानिक स्वरूप का विवेचन
ऋषियों ने कहा- साधुशिरोमणे। अब आप पार्थिव प्रतिमा की पूजा का विधान बताइये, जिससे समस्त अभीष्ट वस्तुओं की प्राप्ति होती है।
सूतजी बोले- महर्षियो! तुम लोगों ने बहुत उत्तम बात पूछी है। पार्थिव प्रतिमा का पूजन सदा सम्पूर्ण मनोरथों को देनेवाला है तथा दुःख का तत्काल निवारण करने- वाला है। मैं उसका वर्णन करता हूँ, तुम लोग उसको ध्यान देकर सुनो। पृथ्वी आदि की बनी हुई देव प्रतिमाओं की पूजा इस भूतल पर अभीष्टदायक मानी गयी है, निश्चय ही इसमें पुरुषों का और स्त्रियों का भी अधिकार है। नदी, पोखरे अथवा कुएं में प्रवेश करके पानी के भीतर से मिट्टी ले आये। फिर गन्ध-चूर्ण के द्वारा उसका संशोधन करे और शुद्ध मण्डप में रखकर उसे महीन पीसे और साने। इसके बाद हाथ से प्रतिमा बनाये और दूध से उसका सुन्दर संस्कार करे। उस प्रतिमा में अंग- प्रत्यंग अच्छी तरह प्रकट हुए हों तथा वह सब प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सम्पन्न बनायी गयी हो। तदनन्तर उसे पद्मासन पर स्थापित करके आदरपूर्वक उसका पूजन करे। गणेश, सूर्य, विष्णु, दुर्गा और शिव की प्रतिमा का, शिव का एवं शिवलिंग का द्विज को सदा पूजन करना चाहिये। षोडशोपचार-पूजनजनित फल की सिद्धि के लिये सोलह उपचारों द्वारा पूजन करना चाहिये। पुष्प से प्रोक्षण और मन्त्र-पाठपूर्वक अभिषेक करे। अगहनी के चावल से नैवेद्य तैयार करे। सारा नैवेद्य एक कुडव (लगभग पावभर) होना चाहिये। घर में पार्थिव-पूजन के लिये एक कुडव और बाहर किसी मनुष्य द्वारा स्थापित शिवलिंग के पूजन के लिये एक प्रस्थ (सेरभर) नैवेद्य तैयार करना आवश्यक है, ऐसा जानना चाहिये। देवताओं द्वारा स्थापित शिवलिंग के लिये तीन सेर नैवेद्य अर्पित करना उचित है और स्वयं प्रकट हुए स्वयम्भूलिंग के लिये पाँच सेर। ऐसा करने पर पूर्ण फल की प्राप्ति समझनी चाहिये। इस प्रकार सहस्र बार पूजा करने से द्विज सत्यलोक को प्राप्त कर लेता है।
|