लोगों की राय

गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिव पुराण

शिव पुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14
आईएसबीएन :81-293-0099-0

Like this Hindi book 0

भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


बारह अंगुल चौड़ा, इससे दूना और एक अंगुल अधिक अर्थात् पचीस अंगुल लंबा तथा पंद्रह अंगुल चौड़ा जो लोहे या लकड़ी का बना हुआ पात्र होता है, उसे विद्वान् पुरुष 'शिव' कहते हैं। उसका आठवाँ भाग प्रस्थ कहलाता है, जो चार कुडव के बराबर माना गया है। मनुष्य द्वारा स्थापित शिवलिंग के लिये दस प्रस्थ, ऋषियों द्वारा स्थापित शिवलिंग के लिये सौ प्रस्थ और स्वयम्भू शिवलिंग के लिये एक सहस्त्र प्रस्थ नैवेद्य निवेदन किया जाय तथा जल, तैल आदि एवं गन्ध द्रव्यों की भी यथायोग्य मात्रा रखी जाय तो यह उन शिवलिंगों की महापूजा बतायी जाती है। देवता का अभिषेक करने से आत्मशुद्धि होती है गन्ध से पुण्य की प्राप्ति होती है। नैवेद्य लगाने से आयु बढ़ती और तृप्ति होती है। धूप निवेदन करने से धन की प्राप्ति होती है। दीप दिखाने से ज्ञान का उदय होता है और ताम्बूल समर्पण करने से भोग की उपलब्धि होती है। इसलिये स्नान आदि छ: उपचारों को यत्नपूर्वक अर्पित करे। नमस्कार और जप - ये दोनों सम्पूर्ण अभीष्ट फल को देनेवाले हैं। इसलिये भोग और मोक्ष की इच्छा रखनेवाले लोगों को पूजा के अन्त में सदा ही जप और नमस्कार करने चाहिये। मनुष्य को चाहिये कि वह सदा पहले मन से पूजा करके फिर उन-उन उपचारों से करे। देवताओं की पूजा से उन-उन देवताओं के लोकों की प्राप्ति होती है तथा उनके अवान्तर लोक में भी यथेष्ट भोग की वस्तुएँ उपलब्ध होती हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book