धर्म एवं दर्शन >> हमारे पूज्य देवी-देवता हमारे पूज्य देवी-देवतास्वामी अवधेशानन्द गिरि
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’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...
अंशुमाली सूर्य
संसार में सबसे चमकीली वस्तु सूर्य है। सूर्य के बाद चंद्रमा और असंख्य तारे हैं किंतु वे सब सूर्य के प्रकाश से ही प्रकाशित होते हैं।'मार्कण्डेय पुराण' के अनुसार सूर्य ब्रह्म स्वरूप हैं। सूर्य से संपूर्ण जगत उत्पन्न होकर उन्हीं में स्थित है। वे सनातन परमात्मा हैं। असंख्य किरणों से सुशोभित अंशुमाली ज्योति रूप हैं। सूर्यदेव चराचर की आत्मा और तीनों लोकों के नेत्र स्वरूप हैं। वे सदा प्रकाशपुंज काल का विभाजन और अंधकार का विनाश करते हैं। सविता, मार्तंड, भास्कर, दिवाकर, दिनकर, दिनपति एवं रवि आदि नामों से प्रसिद्ध सूर्यदेव अपने भक्तों को वर देने में पूर्ण समर्थ हैं। सूर्य संपूर्ण जगत की आत्मा, जगत को प्रकाशित करने वाले और पापों का नाश करने वाले हैं।
सूर्य नवग्रहों के प्रमुख देवता तथा सिंह राशि के स्वामी हैं। वे अपनी सुनहरी किरणों से रात्रि के घने अंधकार को दूर करते हुए प्रात:काल पूर्व दिशा में उदयाचल के ऊपर प्रकट होते हैं। वे संपूर्ण ब्रह्मांड को प्रकाशित करते हुए ऊष्मा प्रदान करते हैं और सायंकाल लाल किरणें बिखेरते हुए पश्चिम दिशा में अस्ताचल पर पहुंचकर हमारे नेत्रों से ओझल हो जाते हैं।
सूर्यदेव का लाल वर्ण है। वे कमलासन पर बैठे हुए हैं। उनके सिर पर दिव्य मुकुट और गले में दिव्य रत्नों की माला सुशोभित है। वे एक चक्र वाले रथ पर सवार हैं। उस रथ को सात घोड़े खींचते हैं और पक्षिराज गरुड़ के भाई अरुण उस रथ को हांकते हैं। वह रथ निरंतर पूर्ण वेग से चलता रहता है। वैज्ञानिक सूर्य को स्थिर बताते हैं किंतु सौर सिद्धांत उसे गतिशील मानता है। इस बात को लेकर वैज्ञानिकों में मतभेद है लेकिन अभी अन्वेषण चल रहा है। संभव है, आगे चलकर सभी वैज्ञानिक सौर सिद्धांत को स्वीकार कर लें क्योंकि पुराणों की बहुत सी मान्यताओं को अब वैज्ञानिक मानने लगे हैं।
वेद की दृष्टि में वैदिक देवताओं का तीन प्रकार से वर्गीकरण किया गया है- पहला पार्थिव (पृथ्वी से संबंध रखने वाले देवता), दूसरा अंतरिक्षचारी (आकाश एवं पृथ्वी के बीच संचरण करने वाले देवता) और तीसरा गगनचारी (आकाश से संबंध रखने वाले देवता)। इन तीनों में सूर्य तीसरे प्रकार के देवताओं में आते हैं। भगवान सूर्य की गायत्री मंत्र से उपासना की जाती है।
भगवान सूर्य साक्षात नारायण हैं। उनकी उपासना अनादि काल से चली आ रही है। प्रातः, मध्याह्न एवं सायंकाल की संध्या भगवान सूर्यदेव की ही उपासना है। यह द्विजातियों के लिए अनिवार्य कर्तव्य है, इसलिए वे प्रतिदिन सूर्य को विधिपूर्वक गायत्री मंत्र से अर्ध्य प्रदान करते हैं। रविवार का व्रत रखने वाले साधक सूर्य की ही पूजा करते हैं। कार्तिक मास में बिहार प्रदेश में प्रसिद्ध छठ-पूजा भगवान सूर्य की ही उपासना है।
सूर्यदेव की उपासना से संतानहीन को पुत्र प्राप्त होता है, असाध्य रोगों से छुटकारा मिलता है तथा नेत्र दोष और ग्रह पीड़ा दूर होती है। चराचर जगत के जीवनदाता सूर्य संपूर्ण प्राणियों के आराध्य हैं। उनकी प्रसन्नता के लिए पूजन, मंत्र जप और यज्ञ आदि किए जाते हैं। ज्योतिष के अनुसार सूर्य ग्रह की शांति के लिए माणिक्य धारण करना चाहिए। त्रेता युग में कपिराज सुग्रीव और द्वापर युग में महारथी कर्ण सूर्य के अंश से ही पैदा हुए थे। प्रभु हनुमान के विद्या गुरु सूर्यदेव ही हैं। कोणार्क का सूर्य मंदिर अति प्राचीन और विश्वविख्यात है।
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