धर्म एवं दर्शन >> हमारे पूज्य देवी-देवता हमारे पूज्य देवी-देवतास्वामी अवधेशानन्द गिरि
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’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...
पालनकर्ता विष्णु
जब महाप्रलय में सब कुछ नष्ट हो जाता है तब केवल चेतन ब्रह्म ही शेष रह जाता है। वह निर्गुण ब्रह्म शव की भांति निष्क्रिय अवस्था में पड़ा रहता है। जब वह अकेलेपन से ऊब जाता है तब उसे इच्छा होती है कि मैं एक से अनेक हो जाऊं। जगत उसी ब्रह्म की इच्छा का परिणाम है-सर्ग इच्छा का है परिणाम। इच्छा होते ही सर्वप्रथम माया ब्रह्म से छिटककर अलग हो जाती है तब माया का साथ पाकर निर्गुण सगुण बन जाता है। वह सगुण ब्रह्म ही ईश्वर कहलाता है। ईश्वर ही जगत का कर्ता, धर्ता और संहर्ता है। उसी ईश्वर को सौर संप्रदाय सूर्य, गाणपत्य संप्रदाय गणेश, शाक्त दुर्गा, शैव शिव और वैष्णव विष्णु कहते हैं।
भगवान विष्णु परब्रह्म हैं। उन्हीं से यह जड़-चेतनमय संसार उत्पन्न हुआ है और वही संसार में व्याप्त हैं। यह सब उन्हीं की लीला का विस्तार है। वे जरा मुस्करा दिए तो जगत-पुष्प खिल जाता है और भू-भंग होते ही उनकी क्रोधाग्नि से जगत-पुष्प झुलस जाता है। वेद उनके नि:श्वास से उत्पन्न हुए हैं।
संसार में जितना जल है, उन्हीं भगवान विष्णु से उत्पन्न हुआ है और जल में नारायण रूप से शेषशय्या पर वही विराजमान हैं। उनके शिर पर मुकुट, कानों में कुंडल और वक्ष पर वनमाला सुशोभित है। वे भक्तों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदान करने के लिए अपने चारों हाथों में क्रमशः चक्र, गदा, पद्म तथा शंख धारण किए हुए हैं। कुछ लोग उन्हें ' क्षीर सागरवासी' कहते हैं तो कुछ लोग वैकुंठवासी। किंतु वे सर्वत्र व्याप्त हैं।
श्री विष्णु को श्रद्धा-भक्ति और प्रेम से जहां भी पुकारा जाता है, वे वहीं प्रकट हो जाते हैं। जब-जब भक्त, देव और धर्म पर आपत्ति के बादल मंडराते हैं तब-तब वही मानव अथवा मानवेतर प्राणी के रूप में अवतार लेते हैं। प्रलय के समय वे सृष्टिबीज के रक्षार्थ मत्स्य के रूप में प्रकट हुए। समुद्र मंथन के समय उन्होंने कच्छप का रूप धारण किया। हिरण्याक्ष से पृथ्वी को मुक्त कराने के लिए उन्होंने शूकरावतार लिया।
श्री विष्णु लोकपीड़क हिरण्यकशिपु का वध और भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए नृसिंह के रूप में प्रकट हुए। देवताओं के हित के लिए उन्होंने वामन ब्रह्मचारी का रूप धारण कर राजा बलि को छला। अभिमानी क्षत्रियों का संहार करने के लिए उन्होंने परशुराम के रूप में अवतार लिया। राक्षसराज रावण का सकुल संहार करने तथा संसार को मर्यादा का पाठ पढ़ाने के लिए उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के रूप में अवतार लिया। वही द्वापर में भू-भार हरण करने के लिए यदुकुल में श्रीकृष्ण के रूप में अवतरित हुए।
भगवान विष्णु के मानवावतारों में जितनी लोकप्रियता श्रीराम और श्रीकृष्ण को मिली, उतनी लोकप्रियता वामन, परशुराम और बुद्ध को नहीं मिली। इन दोनों की लोकप्रियता का कारण यह है कि श्रीराम और श्रीकृष्ण ने लोक चेतना में बैठकर आशा एवं विश्वास का विलक्षण संचार किया। इन दोनों ने आततायियों का संहार करने के साथ-साथ भक्तों के कल्याण के लिए अत्यंत मधुर, सरस और मनभावन लीलाएं कीं। भगवान विष्णु की लीलाएं उन्हीं का स्वरूप हैं, इसलिए उनकी लीलाओं को पढ़ने-सुनने से कल्याण होता है।
भगवान विष्णु की महिमा अनंत है। समस्त शास्त्र उन्हीं की महिमा का गुणगान करते हैं। उनके नाम, गुण और लीलाओं का वर्णन भगवान शेष अपने हजार मुखों से करते रहते हैं। धन की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी श्री विष्णु की पत्नी हैं। उनके सहयोग से ये लोक-रक्षा करते हैं। पुराणों में वर्णित उनके विभिन्न स्वरूप एवं अवतार की कथा इस प्रकार है-
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