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नारी विमर्श >> प्यार का चेहरा

प्यार का चेहरा

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : सन्मार्ग प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :102
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15403
आईएसबीएन :000

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नारी के जीवन पर केन्द्रित उपन्यास....

29

लतू का यह रंग-ढंग सागर को अच्छा नहीं लगा। आदमी की निष्ठुरता, अमानवीयता देखकर दुखित होने के बदले हंसना ! सागर ने कहा, "हंस क्यों रही हो?"

"यह देखकर हंस रही हूं कि तू कितना सरल है। नानी एक ओर जहां बहुत ही भली हैं, वहीं दूसरी ओर उनसे इतना बुरा बर्ताव व करती हैं, इस सम्बन्ध में तेरे मन में कोई विचार नहीं जगता है?"

"जगेगा क्यों नहीं? बताया न, कि गरीब हैं इसीलिए।"

"खैर, यदि यही सच है तो अरुण दादा क्रोध और अपमान से भड़ककर उनके घर में आना छोड़ क्यों नहीं देते? गरीबों में तो मान-अपमान का बोध तीव्रतर होता है।"

सागर गंभीर होकर कहता है, "इसलिए कि वे बहुत ही भलेमानस हैं। मर्द औरतों से कहीं अधिक भद्र होते हैं, समझ लतू !"

"समझी।"

यह कहकर लतू जरा हंसती है।

उसके बाद कहती है, “किसी दिन तुझे बताऊंगी।”

"तुम सिर्फ यही कहती हो कि बाद में बताऊंगी।"

लतू सागर के लंबे बालों को मुट्ठी में कसकर पकड़ते हुए कहती है, "सारी वात क्या किसी भी क्षण बताई जा सकती है?"

उन बालों की जड़ से प्रवाहित होती हुई आग की एक लपट सागर की शिराओं में उत्ताप फैला देती है। सागर बेवकूफ के मानिन्द एक हरकत कर बैठता है।

सागर एकाएक लतू को अपनी बांहों में समेट बोल उठता है, "लतू, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो।"

लतू गंभीर हो जाती है। आहिस्ता से हटाकर गंभीर स्वर में कहती है, "छोड़, कोई देख लेगा तो क्या सोचेगा !...अच्छी लगती हूँ, प्यार करते हो इसे आडंबर के साथ जताने की जरूरत ही क्या है? मैं भी क्या तुझे प्यार नहीं करती? तुम पर नजर पड़ते ही मुझे अच्छा लगा था। यह बात आडंबर के साथ कभी जताने गई थी?"

सागर एक और बेवकूफी का काम कर बैठता है।

अचानक खड़ा होकर वह दौड़ते हुए भाग जाता है।

क्या हुआ? आज फिर तुझे पिशाच ने दबोच लिया था?

सागर ने चिहुंककर देखा।

सागर बर्फीला सागर हो जाता है।

सागर भागने के दौरान पुलिस के हाथ में पड़ गया है।

पुलिस को पहनावा है-बदरंग खाकी हाफपँट, देह पर बिना बांह वाली बनियान। सिर पर ताड़ के पत्ते का हैट, पैरों में वजनदार गर्म बूट।

सागर क्या इसके पास से भाग सकता है?

सागर आत्मरक्षा का प्रयास नहीं करता।

सागर आत्म-समर्पण कर देता है। सागर स्वीकारोक्ति कर बैठता है- "आज मैं एक बहुत ही बुरा काम करके आया हूं।"

यह पहलेवाला ही चबूतरा है।

अभी यहां धूप नहीं है।

विनयेन्द्र बीच-बीच में आकर बैठते हैं। एक पूरा मकान और रहने बाले के नाम पर सिर्फ एक ही व्यक्ति-कितना उपभोग कर ही सकता है?

फिर भी विनयेन्द्र कभी यहां और कभी वहां बैठते हैं।

कोई सामने होता है तो कहते हैं, "यहां बैठकर मेरे दादा तेल मालिश करते थे। यहां मेरी ब धूप से बदन तपाते हुए बरी सुखाती थीं।”

"यहां बैठ जा।"

विनयेन्द्र बोले, "अभी तुरन्त थर नहीं जाना है।"

उसके बाद बोले, “यहां बैठे हम लोग–मैं और चाचा हिलतेडलते हुए अपना पाठ मुखस्थ करते थे।"

सागर ने शून्य दृष्टि से ताका।

विनयेन्द्र गंभीर दृष्टि से इस सिर झुकाए लड़के की ओर देख शांत स्वर में कहते हैं, "प्यार करना बुरा काम है, यह तुमसे किसने कहा? जिसे भी मर्जी हो, तुम प्यार कर सकते हो। पर हां, उस कार्रवाई को थोड़ी-बहुत बेवकूफी कहा जा सकता है। लेकिन सबसे बड़ी बेवकूफी है उसे आडंबर के साथ कहना। बोलने की जरूरत ही क्या हैं? तुम यदि सचमुच ही किसी को प्यार करते हो, उसे चिल्ला-चिल्लाकर न कहने से समझ नहीं पाएगा?...मसलन तु जो मुझे प्यार करता है, मेरे प्रति श्रद्धा और भक्ति रखता है, कितने दिन देखी ही है मुझे, फिर भी ऐसा कर रहा है, यह क्या मैं समझ नहीं पाता हूं या नहीं पा रहा हूं?...नहीं-नहीं, हंस मत, सच्चा प्यार इसी किस्म का होता है। तुम प्यार करोगे तो उसे पता चल जाएगा। लेकिन देख, चिल्ला-चिल्लाकर घोषणा करने से कितनी मुसीबत का सामना करना पड़ता है। लतू जैसी लड़की संसार में दुर्लभ है, उसे बगैर प्यार किए कौन रह सकता है?"

विनयेन्द्र पुनः हल्की-सी हंसी हंसते हैं, “मुझे तो लगता है, वह यदि अपनी सौतेली मां के पास जाकर रहती तो मजबूरन उसे भी प्यार करना पड़ता। उसे प्यार करने की तुझे इच्छा होती है तो इसमें आश्चर्य की बात नहीं है, मगर जिस क्षण तु मुंह खोलकर कह बैठा, तेरी क्या हालत हुई, बता तो सही?–भोरी करते पकड़े जाने की तरह दौड़कर भाग आया। अब इसके बाद क्या होगा? लतू के सामने तू सिर ऊंचा नहीं कर सकेगा। उस पर नजर पड़ते ही दौड़कर मारने की इच्छा होगी। लिहाजा तुम इसके बाद उसे एवॉयड किए चलोगे। फिर बताओ, तुम्हें कौन-सा लाभ हुआ? प्यार का इजहार करके तुमने प्यार के पात्र को खो दिया।"

सागर के झुके सिर के अन्तराल में क्या घटित होता रहा, कौन जाने !

विनयेन्द्र ने उस तरफ ध्यान से नहीं देखा।

हो सकता है, जान-सुनकर ऐसा नहीं किया।

थोड़ी देर तक चहलकदमी कर टहलते रहे, उसके बाद निकट आकर कहते हैं, “तुम्हारे जैसे लड़कों के लिए ही अधिक चिन्ता होती है। तुम्हीं लोगों की मुसीबत में फंसने की संभावना है। पॉलिटिक्स

तुम्ही लोगों को चबाकर खा जाता है। बहरहाल, मैं तुझे कहे देता हूं, यह मत सोचना कि कई दिन बाद ही चला जाऊंगा, और इस बीच के वक्त को आँखें चुराकर, घूम-फिरकर गुजार दूंगा, उसकी छांह तक के पास नहीं फटकूगा। वह अन्याय होगा। वह खराब कामं होगा ! लतू से मिलते-जुलते रहना। जिस प्रकार सहज ढंग से बातें करता था, उसी तरह बतियाना। लेकिन हां, आडंबर दिखाकर माफी मत मांगना। वह लड़की ऐसा करने से तुझे चप्पल मारकर भगा दे कती है। बड़ी ही दबंग लड़की है वह।"

यह कहकर विनयेन्द्र जोरों से एक ठहाका लगाते हैं।

उस हंसी से संपूर्ण परिवेश निर्मल हो उठता है।

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