नारी विमर्श >> प्यार का चेहरा प्यार का चेहराआशापूर्णा देवी
|
0 |
नारी के जीवन पर केन्द्रित उपन्यास....
30
लाइब्रेरी से वापस आने के दौरान प्रवाल के साथ चल रहे। नवयुवक ने कहा, "प्रवाल दा, जरा रुक जाइए, हम लोगों की लाइब्रेरी के एक और सहयोगी से आपका परिचय करा दूं। यह है लतू दी।"
लतू के हाथ में एक बंडल लम्बी कमची है, लतू गंभीरता के साथ मुड़कर देखती है।
"प्रवाल दा आज हम लोगों की लाइब्रेरी देखने गए थे, लतू दी !”
लतू ने कमची सहित हाथ जोड़ने की कोशिश की।
प्रवाल ने मुसकराकर कहा, "आप सेक्रेटरी हैं?
"नहीं-नहीं, ऐसी बात नहीं, सेक्रेटरी से तो आपका अभी-अभी परिचय कराया है।''आप यानी लतू दो हम लोगों की भरपूर सहायता करती हैं। पुस्तकें सहेज देती हैं, लिस्ट बनाकर संवार देती हैं..."
लतू गंभीर होकर कहती है, “चुप क्यों हो गया? सारा कुछ बता दे। किताबों की गर्द झाड़ देती हैं, झाड़ू लगा देती हैं।..."
वह लड़का लज्जित होकर कहता है, “उफ़, यह सब क्या बोल रही हो, लतू दी?"
लतू भौंह सिकोड़कर कहती है, “क्यों, कुछ बढ़ा-चढ़ाकर कहा है? यह सब नहीं करती हूं? तुम लोगों की आदर्श फूलझांटी लाइब्रेरी के पास अपना एक झाड़ भी है?"
प्रवाल हंसकर कहता है, "इसे क्या आता-जाता है? वह गांव की लड़कियों के हाथ में रहने से ही काम चल जाएगा।"
लतू ने उस नवयुवक की ओर तोककर कहा, "जान-पहचान कराने का काम खत्म हो गया न?”
नवयुवक ने सकते में आकर कहा, "हां, प्रवाल दा तो अगले सोमवार तक ही रहेंगे।...कमची से क्या करोगी, लतू दी?”
"बाड़ देना है।"
लतू मन-ही-मन कहती है, “आदमी आदमी से बुरा सुलूक क्यों करता है, पता है, सागर? सोचता है, यही बहादुरी है।”
उसके बाद फिर कहती है, “तुम दोनों भाई बुद्ध हो। चिनु बुआ अलबत्ता बेवकूफ किस्म की है पर तुम लोगों की तरह बुढू नहीं। तू आज कितना घटियां कांड कर बैठा, बता तो? जो कहना था, बोल गया, पर इस तरह भाग क्यों खड़ा हुआ? दुत्, मूड बिगाड़कर चला गया। और तेरी उस बेवकूफी के फलस्वरूप मुझे यहां-वहां का चक्कर काटते हुए कमची की तलाश करने में देर करना पड़ी-तुझे उस तरह भयभीत हो दौड़ने के दौरान मुझ पर अगर किसी की नजर पड़ गई होती तो अवश्य ही सोचता कि तुझे एकांत में पाकर मैं प्रेतिनी का रूप धारण कर तुझे डराती हूं। और भी कितना कुछ सोच सकता है, लोगों के सोचने की कोई हद नहीं होती। महान व्यक्तियों तक के बारे में सोचते हैं, अधम व्यक्तियों की बात तो जाने दे। तेरे बड़े भाई की नजर पड़ जाती तो अवश्य ही मुझे फांसी पर लटकाने पहुंच जाता। अभी की ही बात ले, प्रवाल बाबू को क्या जरूरत थी कि मेरी जैसी एक अदना लड़की के प्रति व्यंग्य कसे?...उस मेधावी ने कहा-मैं लाइब्रेरी की सेक्रेटरी हूँ ! होती तो भी मेरे सम्मान में कोई बढ़ोतरी नहीं होती। हूं, जैसे बहुत बड़ी लाइब्रेरी है और मैं हूँ उसकी सेक्रेटरी ! जैसी शादी, वैसा ही ढोलकिया ! हूं ! लाइब्रेरी में प्रवाल दा के चरणों की धूल पड़ते ही लाइब्रेरी धन्य हो गई !” जब तक घर के अन्दर प्रवेश नहीं किया, लतू मन-ही-मन बातें करती रही।
और प्रवाल नामक नवयुवक?
लतू के व्यवहार से वह स्वयं को तिरस्कृत क्यों महसूस करता है?
इसके पहले लतू को डांटने-फटकारने के दिन स्वयं को हतप्रभ भहसूस किया था। उस लड़की में यही एक दोष है। एक दिन और सुयोग मिले तो इसका बदला लूंगा।
लेकिन दोष क्या है, इसे तय नहीं कर पाया प्रवाल।
कसकर डांटेगा?
या खूब भलमनसात से पेश आएगा?
"तुम किस क्लास में पढ़ती हो? तुम्हारे सब्जेक्ट क्या थे? इसके बाद पढ़ने की मर्जी है या नहीं, सिउड़ी में तो कलिज है और सुना है, तुम्हारे पिताजी वहीं हैं, तो फिर कॉलेज में दाखिला क्यों नहीं लिया?'' यह सब पुछना कोई बुरा नहीं रहेगा।
मुझे बहुत अशिष्ट और अभद्र समझ रखा है तुमने। धारणा बदल जाएगी।
यह सुयोग कब, किस समय और कहां मिलेगा, असली बात यही है।
यहां बेशक सुयोग का नितान्त अभाव नहीं है। लड़कियां तो मुहल्ले-भर की चक्कर काटती रहती हैं। इसके अलावा बहुत सारी जगहें हैं। मैदान, नदी का किनारा, मन्दिर साहब दादू के घर पर भी हमेशा जाया करती है। उस भलेमानस से जमकर बातचीत नहीं हो पा रही है। सुना है, इसके बाद वे मुर्गी-पालन करेंगे। देश के लोगों को आए दिन भरपेट खाना नसीब नहीं होता, यहां तक कि गाय पालना भी खर्चीला हो गया है, इसलिए घर-घर में मुर्गी-पालन की परिकल्पना की है उन्होंने। कम खर्चे में कम-से-कम एक पौष्टिक चीज़ आदमी को खाने को मिलेगी। गांव के बारे में वे गहराई से सोचते रहते हैं। उनके सामने एक आदर्श है लेकिन उसे कार्य-रूप में परिणत करने में कठिनाइया भी हैं। हम लोग गांव आकर गांवों का विकास कर सकते हैं? फूलझांटी की इस जमीन-जायदाद की मालकिन अन्ततः मेरी मां चिन्मयी देवी ही हो जाएगी। इसे लेकर परीक्षण किया जा सकता है।...मगर असंभव है यह। आदर्श का जुनून जिस पर सवार हो, वही यह कर सकता है।
दोनों लड़के न मालूम कहां घूम-फिर रहे हैं।
चिनु दरवाजे के पास खड़ी थी, एक कटोरा मालपुआ हाथ में लिये पटेश्वरी ने प्रवेश किया। एक बहुत बड़ा कटोरा।
|