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काल का प्रहार

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : गंगा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :64
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15412
आईएसबीएन :000

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आशापूर्णा देवी का एक श्रेष्ठ उपन्यास

6

फिर भीम की गदा क्या अपनी जगह से नहीं हिल उठेगी या चन्द्र सूर्य अपनी जगह पर रह सकते थे? जिस घर की पवित्रता रखने के लिए लड़कियों को स्कूल की सीमा से बाहर रखा जाता था, उसी घर में यह सब?

नये दादाजी यानि दलूमौसी के नये चाचा अपनी तेज आवाज में पूछने लगे?

'बूढ़े की बातें क्या सत्य है? तू पद्य लिखती है? दलूमौसी को तो साँप सँघ गया था।

बता जल्दी लिखती है या नहीं?

दलूमौसी पत्थर की प्रतिमा बनी खड़ी रही।

बात का जवाब काहे नहीं देती? सारे गुण ही लगता है मौजूद हैं? बड़ों का आदर करना भी नहीं सीखा?

“क्या लिखती है, मुझे सुना मैं सुनना चाहता हूँ।''

दलूमौसी को तो काटों तो खून नहीं।

"हूँ समझ आ गया। जो लड़की शृंगार करके घूमती है वह ऐसी नहीं तो कैसी होगी? कहाँ है ले.आ।

दलूमौसी भोली, बहरी, पूँगी बनी खड़ी रह गई। वह क्या इस कड़े निर्देश का अर्थ नहीं समझ पा रही थी।

क्या लिखती है यह सुनकर हाथ पर हाथ रख कर बैठा तो नहीं रहा जा सकता देखना तो पड़ेगा।

दलू-जन्नी यानि मझली दादी अपने देवर के पैर पड़ने लगीं-देवर जी मेरी इस बदतमीज लड़की को सजा दो।

मैं तुम्हारी पद्य रचने वाली बेटी को क्यों कर सजा देंगा। देख तो रही हो, डर का लेशमात्र भी नहीं है। कहता हूँ घर में किस तरह का चालचलन चलाया जा रहा? वह तो अडियले घोड़े की तरह गर्दन अकड़ा करे खड़ी है। देखती नहीं।

गर्दन पकड़ कर मारो भाई-तुम्हारे अलावा और कौन है जो ऐसा कर सकता है?

हाँ यह बात सोलह आने सही थी। इस परिवार के दन्डमुन्डे के कर्ता यही नये दादाजी थे। जो किसी अपराधी को उसके जुर्म की सजा दिये। बिना नहीं छोड़ते थे। उन्हीं की अदालत में आसामी को सुपुर्द किया जाता था। उस दिन भी उनकी चीख से लोगों की भीड़ वहाँ इकट्ठी हो गई। बुआ दादी सिर्फ इस घटना से खिंची नहीं बल्कि तंग होकर माली हाथ में लिये ही चली आई।

वह बोली-पद्य और क्या लिखा होगा? ठाकुर देवता की स्तुति या उनका वर्णन किया होगा। ओह ठाकुर देवता की स्तुति। दीदी तुम भी साग से माछी ढकने की कोशिश मत करो तो अच्छा हो। तुम लोगों से बढ़ावा पा-पा कर रही तो यह ऐसी देहयों हो गई है। ला अपना पोथा, देखें कैसी स्तुति गाई है?

पर दलूमौसी को इतना मुश्किल काम नहीं करना पड़ा था।

वह काम तो बूढ़े ने कर दिखाया। उसने दलूमौसी के शौकिया, सुन्दर पोथे को ला दिया। जिसे बलराम से दलूमौसी ने नगद चार आना पैसा देकर मँगवाया था। जो पैसा उन्हें 'रथ उत्सव' के समय मिला था।

इस बड़े पूरे परिवार में चुपचाप वाला काम काफी होता था। बलराम जिसका साक्षी, सहायक व समर्थक भी था। जिसकी माँग गृहणी महल से लेकर निम्न महले तक थी। चुपचाप तली चीजें, पत्तों में बन्द झींगा मछली रसोई में आ जाता। चुपचाप कच्चा अमरुद, विलायती चूरन यह सब पहुँचाने का काम बलराम बड़े ही गोपनीय तरीके से करता और उसकी गोपनीयता रखने में विश्वासघातकता भी वही करता था।

तभी तो बलराम इस मोटे चार आने वाले खाते की घटना को हजम कर गया था।

पर अब वही खाता पाजी, बदमाश छोकरा बूढ़ा दिखा रहा है-किसे-अदालत के निर्दयी हाकिम नये दादा को।

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