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चेतना के सप्त स्वर

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15414
आईएसबीएन :978-1-61301-678-7

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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ

चेतना के सप्त स्वर

 

अपनी बात

वर्तमान समय में हम अपनी भारतीय संस्कृति को भूलते चले जा रहे हैं, पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव तीव्र गति से हमारे ऊपर आरूढ़ होता जा रहा है।

परिणाम स्वरूप पाश्चात्य सभ्यता की विष बल्लरी हमारे ही रक्त का शोषण करते हुए पल्लवित होकर हमें अन्याय, अत्याचार, भ्रष्टाचार के गर्त में डालकर शनैः-शनैः हमारी संस्कृति को समूल नष्ट करती जा रही है।

मेरा हृदय इन परिस्थितियों से द्रवित होकर मार्गदर्शक, प्रेरणादायक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक रचनायें लिखने के लिये विवश हो जाता है।

मैंने इस पुस्तक का नाम ही “चेतना के सप्त स्वर" दिया है एवं पूरा प्रयास किया है, “कि प्रत्येक रचना में कुछ प्रेरणा पाठक को अवश्य मिले।"

मैं अपने सहयोगियों, मित्रों एवं माता-पिता का आभारी हूँ जिन्होंने समय-समय पर प्रेरित करते हुए सहयोग तथा मार्गदर्शन कराया।

मुझे पूर्ण विश्वास है कि पाठक इस पुस्तक की रचनाओं को मनन करके लाभान्वित होंगे, यह मेरा सौभाग्य होगा।"

चेतना के सप्त स्वर,  मुखरित हुए हैं वेदना से।
दे सकें यदि प्रेरणा तो, धन्य हूँ इस चेतना से।।

 

डॉ० ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा
एम.ए. (हिन्दी, समाज शास्त्र)
पी-एच.डी., बी.ए.एम.एस.

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