नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
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भारतीय कवितायें
आत्म साक्ष्य
कविता हृदय से प्रस्फुटित वह स्रोत है, जो सर्वप्रथम रचनाकार के हृदय को ही आत्मबोध सौख्य और स्नेह प्रदान करती है। कविता स्वयं से स्वयं सम्वाद स्थापित करने की एक अलौकिक प्रक्रिया है जो कि आगे चलकर वाणी द्वारा या लिपिबद्धता से संयुक्त होकर समाज को भी आन्दोलित करती है। कविता प्रकृति की एक सृजनात्मक प्रक्रिया है।
आज डॉ० ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा के नवसृजन (चेतना के सप्तस्वर) का अवलोकन करने का अवसर मिला, मैं डॉ० ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा जो जनपद कानपुर के बहुचर्चित एवं सुप्रतिष्ठित चिकित्सक के रूप में जाने जाते हैं, एक साहित्यकार के रूप में मेरा परिचय गोपाल बाजपेई (चौबेपुर) एवं मनोज सिंह 'मानव' (महाराजपुर) द्वारा हुआ मुझे स्मरण है कि, “मनोज सिंह मानव ने एक अच्छा कवि सम्मेलन अपने निवास पर आयोजित किया जिसमें शिवमंगल सिंह ‘स्वयं' ग्राम - जरारी, डॉ० सतीश त्रिपाठी, ओम नगर चौबेपुर एवं सुकवयित्री कविता सिंह तथा भारत के श्रेष्ठ गीतकार शिवकुमार सिंह 'कुंवर' के साथ डॉ० ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा का प्रथम परिचय हुआ। आंचलिक स्तर पर कविसम्मेलन में अपनी व्यस्तता के बावजूद आये कवि सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में मैंने यह अनुमान किया, "कि यह कवि साहित्यिक स्तर पर साथ ही सामाजिक स्तर पर जागरूक नागरिक एवं प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति एवं कवि है" अन्यथा एक व्यस्त चिकित्सक के पास इतना समय कहाँ है “कि वह अपना समय एवं पेट्रोल बर्बाद करे।"
एक वर्ष बाद मैं डॉ० ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा से कवि मनोज 'मानव' के साथ मिला और उनकी शोधग्रन्थ (थीसिस) जो डॉ० माधवीलता शुक्ल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित थी इसका अवलोकन करने का अवसर भी मिला निःसन्देह वे सहृदय कवि, करुणामय चिकित्सक के रूप में दिखाई पड़े। इसी क्रम में इनकी कुछ रचनाओं का अवगाहन करने का अवसर भी मिला रचनाओं के अध्ययन से मुझे लगा कि, “इस कवि के हृदय प्रदेश में गरीबों के प्रति करुणा, समाज के प्रति सहृदयता और नारीवर्ग के प्रति संवेदनशीलता के भाव हैं" जैसा कि बहुचर्चित है कि, "उनका दिन रात का अस्पताल है, इससे निश्चित ध्वनित होता है कि कोई भी पीड़ित मानव कभी भी चिकित्सा लाभ प्राप्त कर सकता है चाहे दिन के ११ बजे हों या रात से १२ बजे हों, वैसे ही कविता लोक में उनका यही सहज भाव है यद्यपि उनका ये प्रथम प्रयास है (चेतना के सप्त स्वर) जो उनका संग्रह प्रकाशित हो रहा है उसमें सभी मनोभावों तथा चेतनाओं की रचनाएं संग्रहित हैं।"
संग्रह का नाम - "चेतना के सप्त स्वर" अपनी सार्थकता सिद्ध करता है। कुछ विद्वानों का मत है, कि “व्यक्तित्व से अच्छा कृतित्व होता है" इस कसौटी पर डॉ० ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा सहज ही खरे उतरते हैं। उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व दोनों ही समान हैं मेरी समस्त शुभकामनाएं डॉ० ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा के लिये प्रेषित हैं।
पी-एच. डी., कविरत्न
निराला पुरस्कार प्राप्त
(चंददास अलंकरण से सम्मानित एवं
उ.प्र. तथा भारत सरकार से सम्मानित)
सिविल लाइन, बांदा
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