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चेतना के सप्त स्वर

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15414
आईएसबीएन :978-1-61301-678-7

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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ

ऐसा नहीं विकास चाहिये


अब भारत में ऋण लेकर, बच्चा पैदा होता है,
सभी जानते हैं फिर भी, हर तन अब भी सोता है।

उठो! जागो! नहीं समय है अब सोने का,
बिता दिया यदि वर्तमान तो
समय आयेगा रोने का।।
मेहनत पर विश्वास चाहिये।
ऐसा नहीं विकास चाहिये।।१

खेतों को विद्युत न मिलती,
हर रोज समस्या हिलती डुलती।
विद्युतीकरण अब गाँवों का,
मरहम है यह किन घावों का।
गलियाँ-गलियाँ पक्की होये,
कृषक बन्धु पंखे में सोवें।
बूंद पसीने की न निकले,
ना विद्युत का दास चाहिये।
ऐसा नहीं विकास चाहिये।।२

आलसी बन रहे दिन प्रति दिन हम,
खेत सूखते इसकी न गम।
दीपक में अब तेल घट रहा,
ऋण में भारत देश बट रहा।
मृग तृष्णा बढ़ती जाती है,
ऐसी नींद हमें आती है।
इसका हमें विनाश चाहिये।
ऐसा नहीं विकास चाहिये।।३

मेहनत की हमें क्रान्ति चाहिये,
हमको न अब शान्ति चाहिये।
मेहनत से विकास होता है,
बूंद पसीना मोती बोता है।
मोती से ऋण अदा करेंगे,
देश में धन-धान्य भरेंगे।
ऐसा सतत् प्रयास चाहिये,
हमको यही विकास चाहिये।।४

मुस्काता भारतीय किसान हो,
साठ वर्ष तक हर तन जवान हो।
दूध दही की नदियाँ बहती हो,
वीरों की गाथा कहती हो।।
बलवान भुजा और पुष्ट देह हो,
शक्तिवान जन-जन का गेह हो।
अब श्वेत क्रान्ति की आश चाहिए।
हमको यही विकास चाहिए।।५

खेतों में छाये हरियाली,
हर घर में होये खुशहाली।
वृक्षों की हर डाल हरी हो,
शीतल, मन्द, सुगन्ध भरी हो।
डाली-डाली कोयल बोले,
वाणी में अमृत रस घोले।
हरित क्रान्ति अब खास चाहिये।
हमको यही विकास चाहिये।।६

विश्व गुरु था भारत मेरा,
सबने डाला भारत में डेरा।
हमने सबको ज्ञान दिया है,
सम्पूर्ण जगत पर ध्यान दिया है।
वर्तमान में भ्रष्ट हो गये,
सद्ज्ञान हमारे नष्ट हो गये।
फिर जगत गुरु की आस चाहिये।
हमको यही विकास चाहिये।।७

ऋषियों का है देश हमारा,
हमको प्राणों से है प्यारा।।
गौतम के उपदेश यहाँ हैं।
वेदों के संदेश जहाँ हैं।।
तुलसी की आवाज आ रही।
गीता जी हैं गीत गा रही ।।
इसका ही अहसास चाहिये।
हमको यही विकास चाहिये।।८

पाश्चात्य सभ्यता पास खड़ी है,
यही समस्या बहुत बड़ी है।
जन-जन पर है रंग जमाती,
भेद-भाव हमको सिखलाती।।
पग-पग में झगड़े करवाती,
फिर यह सबको है भाती।
इसको अब अवकाश चाहिए।
हमको यही विकास चाहिए।।९

लहराती यहाँ प्रेम नाव हो,
कठिन परिश्रम सबका चाव हो।
जगत पूज्य हो देश हमारा,
मानवता हो सबकां नारा।।
भारत का विज्ञान बढ़ा हो,
वेदों का हर मंत्र जड़ा हो।
खिलता हुआ 'प्रकाश' चाहिए,
हमको यही विकास चाहिए।।१०

* *

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