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चेतना के सप्त स्वर

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15414
आईएसबीएन :978-1-61301-678-7

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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ

देश को वीरों का साहित्य चाहिए !


साहित्य हमारा पंगु हो रहा,
इसमें सारा देश सो रहा।
रक्त भरा है वीरों का जो,
हृदय में पड़े-पड़े रो रहा।
उसकी प्रवाह हेतु बन्धुओं
प्रबल प्रयास नित्य चाहिए।
देश को वीरों का साहित्य चाहिए।१

श्रृंगारी साहित्य बढ़ रहा,
सिंहों पर श्रंगाल चढ़ रहा।
अन्धकार बढ़ता जाता है,
फिर भी समझ में ना आता है,
परदा हट जाये नेत्रों का
सबको ऐसा कृत्य चाहिए।
देश को वीरों का साहित्य चाहिए।२

कवि हो कवि का धर्म निभाओ,
रचनात्मक साहित्य बनाओ
श्रृंगार लिखो स्वीकार हमें है,
बेतथ्य लिखो बेकार तुम्हें है
लिखिये ऐसा पूजे जाओ।
ऐसा तुम्हें पाण्डित्य चाहिए।
देश को वीरों का साहित्य चाहिए।३

देश के भाग्य विधाता तुम हो,
नवयुग के निर्माता तुम हो।
हे निर्माता! कच्चे घट के,
ऐसा न हो कोई भटके।।
दूध दही का पात्र बनाओ
ऐसा उज्ज्वल छात्र बनाओ
यह प्रयास तुम्हें नित्य चाहिए।
देश को वीरों का साहित्य चाहिए।४

बच्चा-बच्चा वीर बने अब,
धीर और गम्भीर बनें सब।
वीर शिवा की याद दिलाओ,
राणाप्रताप का पाठ पढ़ाओ।
पदिमनियाँ न बनने पायें,
झाँसी की रानी बन जाए।।
ऐसा उत्तम चित्त चाहिए।
देश को वीरों का साहित्य चाहिए।५

कह दो - कह दो वीर धरा है
सिंहों का ही रक्त भरा है।
पुनः वीर भारत बन जाय,
विश्व श्रेष्ठ अब भी कहलाए।
जग में चमके भारत 'प्रकाश' बन
ऐसा प्रखर आदित्य चाहिए।
देश को वीरों का साहित्य वाहिए।६

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