नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
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भारतीय कवितायें
सरस्वती वंदना
हे ! वीणा वादिनी मां
मम हृदय ज्योतित् ज्ञान भर दो।
मम लेखनी में सद्भावना,
सप्रेरणा के तीव्र स्वर दो।।१।।
हो न कुन्ठित मम हृदय
कलुषित किसी भी आचरण से।
डिग न जायें पाँव मेरे
सत्य-व्रत पोषण भरण से।।२
ज्ञान ऐसा मातु दे दो,
स्वयम् का हित तो करें।
साथ ही संसार की
अज्ञान जड़ता भी हरें।।३
चेतना में जागरण हो,
मोह पशुता का हरण हो।
साहित्य सेवारत सदा हो,
छल दम्भ, द्वेषों की विदा हो।।४
चेतना के सप्त स्वर में
मुखरित हो, तेरा गान करें।
कर 'प्रकाश' दशो दिशाओं में
माँ! हम तेरा सम्मान करें।।५
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