नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
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भारतीय कवितायें
शिव वन्दना
विषहारी, पुरारि कहावत हौ,
विषया विष पान करौ न करौ।
शरणागत नाथ तुम्हारो भयो,
मेरे शीश पे हाथ धरौ न धरौ।।१
देवाधि देव, शिव, महादेव,
निज भक्ति का दान करौ न करौ।
आशुतोष है नाम तुम्हारा प्रभो,
मेरो परितोष करौ न करौ।।२
भव ताप से दग्ध है देह मेरी,
मेरो सब दोष हरौ न हरौ।
“अब छोड़ि न जांऊ शरण तेरी",
मेरी कदराई करौ न करौ।।३
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