नई पुस्तकें >> सूक्ति प्रकाश सूक्ति प्रकाशडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
|
0 |
1000 सूक्तियों का अनुपम संग्रह
जब तक 'मैं' और 'मेरा' का बुखार चढ़ा हुआ है, तब तक शान्ति नहीं .. मिल सकती।
जरा रूप को, आशा धैर्य को, मृत्यु प्राण को, असूया धर्मचर्या को, क्रोध श्री को, अनार्यसेवा शील को, काम लज्जा को और अभिमान सब को हरता है।
अहंकार रूपी बादल के हट जाने पर चैतन्यरूपी सूर्य के दर्शन होते हैं।
पूर्ण शान्ति का मुझे कोई रास्ता नहीं दिखाई देता, सिवा इसके कि आदमी अपने अन्तर की आवाज़ पर चले।
मनुष्य अपने अन्तर का अनुसरण करता है, इसका पता उसकी नजरें दे देती हैं।
जो किसी को दुःख नहीं देता और सबका भला चाहता है, वही अत्यन्त सुखी रहता है।
यौवन, धन-सम्पत्ति, प्रभुत्व और अविवेक-इनमें से प्रत्येक अनर्थ करने के लिए काफी है। जहाँ चारों हों वहाँ क्या होगा?
नादान दोस्त से दानेदार दुश्मन अच्छा।
अन्धश्रद्धा अज्ञान है।
सत्य को हमेशा सूली पर लटकाये जाते देखा, असत्य को हमेशा सिंहासन पाते देखा।
अन्याय और अत्याचार करने वाला उतना दोषी नहीं है जितना उसे सहन करने वाला।
जब हर कोई चोरी करता है, धोखा देता है और मजे से गिर्जाघर जाता है, तो अन्धकार कैसा निविड़?
काम की अधिकता नहीं, अनियमितता आदमी को मार डालती है।
जहाँ अनुकरण है, वहाँ खाली दिखावट होगी, जहाँ खाली दिखावट है वहाँ मूर्खता होगी।
बिना अनुभव, कोश का शाब्दिक ज्ञान अन्धा है।
दर्शन विश्वास है, परन्तु अनुभव नग्न सत्य है।
जो 'कृष्ण-कृष्ण' कहता है वह उसका पुजारी नहीं; 'रोटी-रोटी' कहने से पेट नहीं भरता, खाने से ही भरता है।
जिसने अपनापन खोया उसने सब खोया।
हर आदमी अपने मत को सच्चा और अपने बच्चे को अच्छा समझता है, लेकिन इसीलिए दूसरे के मत या बच्चे को बुरा कहना उचित नहीं है।
गैर भी अपना हितेच्छु है तो बन्धु है, और भाई भी अहितेच्छु हो तो उसे गैर समझना। जैसे देह का रोग अहित करता है और जंगल की औषधि हितकारी है।
जुर्म को कबुल कर लेने से आधा जुर्म माफ़ हो जाता है।
अभिमान मोह का मूल है - बड़ा शूलप्रद।
|