नई पुस्तकें >> सूक्ति प्रकाश सूक्ति प्रकाशडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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1000 सूक्तियों का अनुपम संग्रह
आशा ही दुःख की जननी है, और निराशा ही परम सुख-शान्ति देने वाली है।
सिर्फ आदमी ही रोता हुआ जन्मता है, शिकायतें करता हुआ जीता है, और निराश मरता है।
क्या यह कम आश्चर्य की बात है कि लोगों को दुनिया से लगातार जाते हुए देखकर भी यह मन संसार का संग नहीं छोड़ पाता?
लोग दिन-दिन मरते हैं, मगर जीने वाले यही समझते हैं कि हम यहाँ सदा ही रहेंगे। इससे बड़ा आश्चर्य और क्या होगा?
आदर्श-विहीन मनुष्य मल्लाह रहित नाव जैसा है।
आदमी जब कभी किसी दुनियावी चीज से दिल लगाता है, तभी उसको धोखा होता है। आप सांसारिक पदार्थों में आसक्ति रख कर सुख नहीं पा सकते।
लालच और आनन्द ने कभी एक दूसरे का मुँह नहीं देखा, फिर वे मित्र हों तो कैसे?
अगर कोई मनुष्य शुद्ध मन से बोलता या काम करता है, आनन्द उसके पीछे परछाई की तरह चलता है, जो कि उससे कभी अलग नहीं होता।
आनन्द वह खुशी है जिसके भोगने से पछताना नहीं पड़ता।
शोपनहोर कहते हैं 'अपने अन्दर आनन्द पाना मुश्किल है। मगर उसे और कहीं पा सकना असम्भव है।
अगर ठोस आनन्द की हमें कद्र है तो यह रत्न हमारे हृदय में रखा हुआ है, वे मूर्ख हैं जो इसकी तलाश में नाहक भटकते हैं।
सत्पुरुषों का आनन्द विजय में नहीं, युद्ध में है।
आनन्द सर्वोत्तम मदिरा है।
बांटने से आनन्द दुगना हो जाता है।
आनन्द का मूल सन्तोष है।
- मनु
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जो मुह को अच्छा लगता है वह हमेशा पेट के लिए अच्छा नहीं होता।
-डेनिश कहावत
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पूर्ण पुरुष पेटू नहीं होता।
- पुर्तगाली कहावत
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ईश्वर आपदाओं का भला करे, क्योंकि इन्हीं के जरिये हम अपने शत्रुओं और मित्रों को परख सकते हैं।
- अज्ञात
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इन दो किस्म के आदमियों की कोई खास कीमत नहीं, वे जो आज्ञा-पालन न कर सकें, और वे जो सिवाय आज्ञा-पालन के और कुछ न कर सकें।
- कार्टिस
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नम्रता और स्नेहा वाणी, बस ये ही मनुष्य के आभूषण हैं।
- तिरुवल्लुवर
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करोड़ मुहरें खर्च करने से भी आयु का एक पल भी नहीं मिल सकता, वह अगर वृथा गई तो उससे अधिक हानि और क्या है?
- शंकराचार्य
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आलस्य एक प्रकार की हिंसा है।
- गाँधी
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पहले ईमानदारी, फिर मकानदारी।
- डॉ. विश्वकर्मा
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