सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :978-1-61301-681-7

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

कोरे सत्यवादी

प्राचीन काल की बात है किन्हीं दो नदियों के संगम पर आश्रम बना कर एक ब्राह्मण निवास करते थे। उनका नाम कौशिक था। वे अपने जीवन का प्रत्येक क्षण शास्त्रसम्मत धर्माचरण में बिताते थे। उनकी मनोवृत्ति सात्विक थी, वे नियमपूर्वक संगम में स्नान करके दोनों काल सन्ध्या-वन्दन किया करते थे तथा भूल से भी किसी का मन नहीं दुखाते थे। उनके निष्कपट व्यवहार की चर्चा दूर-दूर तक फैल गयी थी।

एक दिन की बात है कि डाकू कुछ व्यक्तियों का पीछा करते-करते उनके आश्रम में आ धमके और उनसे पूछने लगे, "महाराज! आप सत्यवादी हैं, ब्राह्मण हैं, स्वप्न में भी आपने असत्य भाषण नहीं किया है। कृपापूर्वक बतलाइए कि अभी इधर से जो लोग भाग कर गये हैं, वे किस दिशा में गये हैं?"

ब्राह्मण असमंजस में पड़ गये। यह तो नितान्त सत्य था कि कुछ लोग भागते हुए आये थे और वे पूर्व दिशा में समीप ही झाड़ियों में छिप गये थे। ब्राह्मण सोचने लगे कि यदि मैं डाकुओं को उनका ठीक-ठीक पता नहीं बताता हूँ तो मुझे असत्य भाषण का पाप लगेगा। सत्य ही तप है, धर्म है, न्याय है, मैं सत्य को नहीं छिपा सकता। कौशिक ब्राह्मण के नेत्र बन्द थे, वे सत्यासत्य का विवेचन करने में लीन थे।

डाकुओं ने कहा, "महाराज! सत्यवादी तो सत्य बोलने में किसी प्रकार का विलम्ब नहीं करते, इस स्थिति में आपके लिए आगा-पीछा करना उचित नहीं है।"

"उधर" क्षण मात्र में कौशिक ने उस ओर संकेत कर दिया जिस ओर वे मनुष्य छिपे हए थे और पल-भर में ही उनको डाकुओं ने दबोच लिया। परस्पर छीना-झपटी हुई। डाकू शस्त्रों से सज्जित थे। उन्होंने उन सबको मौत के घाट उतार दिया।

ब्राह्मण महाराज के सत्यभाषी होने का यह दुष्परिणाम था। सत्य भाषण के व्रत के साथ उनमें हिताहित का तनिक भी विवेक नहीं था, वे कोरे सत्यवादी थे। ब्राह्मण कौशिक के इस सत्य ने अधर्म और अन्याय को प्रोत्साहन दिया और इससे उन्हें नरक में जाना पड़ा।  

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