सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :978-1-61301-681-7

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

मृत्यु अवश्यम्भावी है

एक थी किसा गौतमी। महात्मा बुद्ध पर उसका अटूट विश्वास था। उसका पति नहीं था। उसका एक छोटा-सा पुत्र था और उसका वह एकमात्र पुत्र शैशवावस्था में ही एक दिन अचानक चल बसा। उसके प्रति वह अत्यन्त मोहासक्त थी। उसकी मृत्यु पर वह अत्यन्त शोकाकुल हो गयी। वह अपने मृत पुत्र को छाती से चिपकाए इधर-उधर भटकती हुई कहती, "कोई दवा दो, कोई मेरे बच्चे को अच्छा कर दो।"

लोगों ने उसको बहुत समझाया कि मृत पुत्र का जीवित होना किसी प्रकार भी सम्भव नहीं किन्तु उसकी समझ में नहीं आया।

उसकी दयनीय स्थिति देख कर एक सज्जन ने उसको महात्मा बुद्ध के पास यह कह कर भेज दिया कि वह सामने के विहार में जाकर भगवान बुद्ध से इसकी दवा माँगे। वे निश्चय ही उसका दुःख मिटा देंगे।

किसा दौड़ी हुई गयी और मृत बालक को जिलाने के लिए भगवान बुद्ध से रो-रो कर प्रार्थना करने लगी।

भगवान ने कहा, "यह तुमने बड़ा अच्छा किया, तुम इसकी दवा के लिए यहाँ आ गयी हो। बच्चे को मैं जिला दूंगा। तुम गाँव जाकर, जिसके घर में आज तक कोई भी मरा न हो, उससे कुछ सरसों के दाने माँग लाओ।"

किसा गौतमी बच्चे की देह को छाती से चिपकाये गाँव की ओर दौड़ी और गाँव में जाकर लोगों से सरसों के दाने माँगने लगी। जब किसी ने सरसों के दाने देने चाहे तो उसने पूछा, "तुम्हारे घर में आज तक कोई मरा तो नहीं है न? मुझे उसी से सरसों लेनी है जिसके घर में आज तक कोई मरा न हो।"

उसकी बात को सुन कर घरवाले ने कहा, "भला, ऐसा भी कोई घर होगा जिसमें आज तक कोई मरा ही न हो, मनुष्य तो हर घर में मरते ही हैं?"।

वह घर-घर फिरी किन्तु सब स्थानों पर उसको एक ही उत्तर मिला। तब उसकी समझ में आया कि मरना तो हर घर का रिवाज है। जो जन्मता है वह मरता ही है, मृत्यु किसी भी उपाय से टलती नहीं, टलती होती तो कोई क्यों अपने प्यारे को मरने देता?

जब उसकी समझ में यह बात भली प्रकार से आ गयी तो उसने बच्चे का अन्तिम संस्कार कर दिया और फिर भगवान बुद्ध की शरण में जा पहुँची। अपनी सारी कथा उनको जाकर सुना दी। भगवान ने उसे फिर समझाया, "यहाँ जो जन्म लेता है, उसे मरना ही पड़ता है, यही नियम है। इसलिए मृत्यु का शोक न करके उस स्थिति की खोज करनी चाहिए जिसमें पहुंचकर फिर जन्म ही न हो। जन्म नहीं होगा तो मृत्यु आप ही मिट जाएगी।"

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