सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :978-1-61301-681-7

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

सच्चा सन्त

भगवान बुद्ध का पूर्ण नामक एक शिष्य था। उसने बुद्ध के अनेक उपदेश सुने थे और उनसे प्रभावित होकर उसने भी उपदेशक बनने का निश्चय किया। एक दिन भगवान से निवेदन कर सीमान्त प्रान्त में धर्म प्रचार के लिए जाने की आज्ञा माँगी। बुद्ध ने कहा,"किन्तु उस प्रान्त के लोग तो अत्यन्त कठोर तथा क्रूर स्वभाव के हैं। वे तुम्हें गाली देंगे, तुम्हारी निन्दा करेंगे तो तुम्हें कैसा लगेगा?"

"भगवन् ! मैं समझूँगा कि वे बहुत भले लोग हैं, क्योंकि वे मुझे थप्पड़-घूसे नहीं मारते केवल गालियाँ ही देते हैं।"

"यदि वे तुम्हें थप्पड़-धूंसे मारने लगें तो?

"वे मुझे पत्थर या डंडों से नहीं पीटते, इसलिए मैं उन्हें सत्पुरुष मानूँगा।"

"वे पत्थर और डंडों से भी पीट सकते हैं।"

"वे शस्त्र प्रहार नहीं करते, इससे वे दयालु हैं-ऐसा मानूंगा।"

"यदि वे शस्त्र प्रहार ही करें?"

"मुझे वे मार नहीं डालते, इसमें मुझे उनकी कृपा दिखेगी।"

"ऐसा नहीं कहा जा सकता कि वे तुम्हारा वध नहीं करेंगे।"

"भगवन् ! यह संसार दुःख रूप है। यह शरीर रोगों का घर है। आत्मघात पाप है, इसलिए जीवन धारण करना पड़ता है। यदि सीमान्त प्रान्त के लोग मुझे मार डालें तो वे मुझ पर उपकार ही करेंगे। वे लोग बहुत अच्छे सिद्ध होंगे।"

भगवान बुद्ध प्रसन्न होकर बोले, "पूर्ण! जो किसी भी दशा में किसी को भी दोषी नहीं देखता, वही सच्चा सन्त है। तुम अब चाहे जहाँ जा सकते हो। धर्म सर्वत्र तुम्हारी रक्षा करेगा।"  

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