सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

">
लोगों की राय

नई पुस्तकें >> प्रेरक कहानियाँ

प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :978-1-61301-681-7

Like this Hindi book 0

सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

सच्चा सुख

एक दिन मृगारमाता विशाखा भगवान बुद्ध के पास आकर, अभिवादन करके बैठ गयी। उसके केश और वस्त्र भीगे हुए थे। मुख पर उदासी और मन में खिन्नता दिखाई दे रही थी। उसके नेत्रों में जिज्ञासा थी और होंठों पर कोई अत्यन्त गहरा प्रश्न था।

उसको इस स्थिति में देखकर तथागत बोले, "तुम्हारी ऐसी असाधारण सी स्थिति देखकर आश्चर्य होता है।"

विशाखा ने भगवान के चरणों में निवेदन करते हुए कहा,"इसमें आश्चर्य की क्या बात है भन्ते! मेरे पौत्र का देहान्त हो गया है, इसलिए मृतक के प्रति यह शोक आचरण है।"

"विशाखा! श्रावस्ती में इस समय कितने मनुष्य हैं, तुम उतने पुत्र-पौत्र की इच्छा करती हो?"

भगवान के इस प्रश्न से श्रावस्ती के पूर्वाराम विहार का कण-कण चकित होउठा।

"हाँ भन्ते!" विशाखा ने उत्तर दिया।

"श्रावस्ती में नित्य कितने मनुष्य मरते होंगे?"

"प्रतिदिन कम से कम दस मरते हैं। किसी-किसी दिन तो संख्या एक तक ही सीमित रहती है। पर कभी नागा नहीं होता।"

तथागत के इस प्रकार के प्रश्नोत्तर से विशाखा भी विस्मित थी।

"तो क्या किसी दिन बिना भीगे केश और वस्त्र के भी तुम रह सकती हो?"

"नहीं भन्ते! केवल उस दिन भीगे केश और भीगे वस्त्र की आवश्यकता होगी जिस दिन मेरे पुत्र-पौत्र का देहावसान होगा।"

"इससे यह स्पष्ट हो गया कि जिसके सौ प्रिय अपने सम्बन्धी हैं उसे सौ दुःख होते हैं, जिसका एक प्रिय अपना होता है, उसे केवल एक दुःख होता है।

जिसका एक भी प्रिय अपना नहीं है, उसके लिए जगत में कहीं भी दुःख नहीं है, वह सुख का बोध पाता है, सुखस्वरूप हो जाता है।" भगवान ने दुःख-सुख का विवेचन.किया।

"मैं भूल में थी भन्ते! मुझे आत्मप्रकाश मिल गया है।" विशाखा ने कहा।

"जगत् में सुखी होने का एकमात्र उपाय यह है कि किसी को भी प्रिय न माने, ममता न करे, अशोक और रागरहित होना हो तो कहीं भी सम्बन्ध स्वीकार न करे।"

तथागत ने धर्मकथा से विशाखा को जाग्रत् किया और उसने सच्चे सुख का बोध पाया।  

¤ ¤

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book