सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :978-1-61301-681-7

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

समझौता

गर्मी की भयंकर ज्वाला से सभी प्राणी व्याकुल थे। सरोवरों, नालों और बावड़ियों का पानी सूख गया था। वृक्ष तपन से दग्ध थे, जीव-जन्तु अकुला रहे थे। कपिलवस्तु और कोलिय नगर की सीमा, रोहिणी नदी जेठ मास की गर्मी के प्रकोप से सिमट कर क्षीणकाय हो गयी थी। धरती इन्द्र की कृपा यानी वर्षा से वंचित थी। ऐसी स्थिति के कारण एक दिन अचानक रोहिणी के तट पर शाक्यों और कोलियों में रोहिणी के पानी के उपयोग पर विवाद हो गया।

शाक्य कर्मकारों ने कहा,"नदी में पानी कम रह गया है। इतना पानी केवल हमारी खेती के लिए ही पर्याप्त है। बाँध के द्वारा पानी दो भागों में बँट जाने से हम दोनों की खेती सूख जाएगी।"

उनकी बात सुन कर कोलियों ने अपने पक्ष में तर्क देते हुए कहा, "यही स्थिति हमारी भी है। हम ही पानी का उपयोग कर लेंगे तो हानि की क्या बात है?"

यों बात बढ़ने से कलह बढ़ गयी और बात दोनों राजकुलों तक पहुँच गयी। तनातनी बढ़ गयी। दोनों एक-दूसरे के प्राणों के शत्रु हो गये। द्वेष की आग प्रज्वलित हो उठी।

उस समय भगवान बुद्ध वहीं रोहिणी के तट पर कपिलवस्तु में ही प्रवास कर रहे थे। प्रातःकाल का समय था। दोनों ओर के सैनिकों ने अस्त्र-शस्त्र अलग रखकर तथागत की वन्दना की। भगवान् बुद्ध ने जब कलह का कारण पूछा तो वे कलह का कारण बताने में असमर्थ रहे। उन्हें कहते हुए लज्जा आने लगती।

अन्त में दोनों को कहना पड़ा, "भन्ते! रोहिणी के पानी का झगड़ा है।"

"पानी का क्या मूल्य है?" भगवान ने दोनों ओर के सेनापतियों से प्रश्न किया।

"कुछ भी नहीं है भन्ते! पानी बिना मूल्य के ही प्रत्येक स्थान पर मिल जाता है।"

शाक्यों और कोलियों को अपनी करनी पर पश्चाताप हुआ। उन्होंने दृष्टि नत कर ली।

"और सैनिकों का क्या मूल्य है?" भगवान के इस प्रश्न को सुन कर वे लोग अत्यन्त लज्जित हुए।

"सैनिकों का मूल्य लगाया ही नहीं जा सकता भन्ते! वे नितान्त अनमोल हैं।" कहकर दोनों पक्षों ने भूल स्वीकार की।

"अनमोल सैनिकों का रक्त क्या साधारण जल के लिए बहाना उचित है?"

"नहीं भन्ते! हमें प्रकाश मिल गया, समझौते का पथ प्राप्त हो गया।"यह कह कर दोनों समुदायों ने भगवान की चरण वन्दना की।

"शत्रुओं में अशत्रु होकर जीना परम सुख है। वैरियों में अवैरी होकर रहना चाहिए।" भगवान बुद्ध ने अपनी शीलमयी वाणी से उन लोगों को समझाया। शाक्यों और कोलियों में समझौता हो गया।

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