सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :978-1-61301-681-7

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

मेहनत की कमाई

प्राचीन काल में कर्म पर विश्वास करने वाले एक त्यागी महात्मा थे, वहकिसी से भीख नहीं माँगते थे, बल्कि टोपी सिल कर अपना जीवल निर्वाह किया करते थे। वहएक टोपी का मूल्य दो पैसे लेते औरउसमें से जो भी याचक पहले मिलता, एक पैसा उसको दे देते बाकी बचे हुए एक पैसे से अपना गुजारा करते थे। उनका एक और नियम था कि जब तक दोनों पैसे खर्च नहीं हो जाते तब तक वहप्रभु भजन ही करते थेनयी टोपी नहीं सिलतेथे।

उनका एक धनी शिष्य था, उसके पास धर्मार्थ निकाला हुआ कुछ धन था। उसने एक दिन महात्मा जी से पूछा, "भगवन् ! मैं वह राशि किसको दान करूँ?"

महात्मा ने कहा, "तुम जिसे सुपात्र समझो, उसको दान करो।"

शिष्य ने रास्ते में एक अन्धे भिखारी को देखा और उसे सुपात्र समझ कर एक सोने की मोहर दे दी। दूसरे दिन उसी रास्ते से शिष्य फिर निकला। पहले दिन वाला अन्धा भिखारीएक दूसरे अन्धे से कह रहा था, "कल एक आदमी ने मुझ को एक सोने की मोहर दी थी, मैंने उससे जी भर शराब पी और रात को एक वेश्या के यहाँ जाकर खूब आनन्द लूटा।"

शिष्य को यह सुन कर बड़ा कष्ट हुआ। उसने महात्मा के पास आकर सारा हाल कहा। महात्मा जी ने अपने पास से उसे एक पैसा देकर कहा, "जाओ, जो सबसे पहले मिले, उसी को यह पैसा दे देना।"

महात्मा ने वह पैसा टोपी सिल कर कमाया हुआ था।

शिष्य पैसा लेकर निकला, उसे एक मनुष्य मिला, उसने उसको पैसा दे दिया और उसके पीछे-पीछे चलना शुरू किया। वह मनुष्य एक निर्जन स्थान में गया और उसने अपने कपड़ों में छिपाये हुए एक मरे पक्षी को निकाल कर फेंक दिया। शिष्य ने उससे पूछा, "तुमने मरे पक्षी को कपड़ों में क्यों छिपाया था और अब क्यों निकाल कर फेंक दिया?"

उसने कहा, "आज सात दिन से मेरे परिवार को दाना-पानी नहीं मिला। भीख माँगना मुझे पसन्द नहीं, आज इस जगह मरे पक्षी को पड़ा देख मैंने लाचार होकर अपनी और अपने परिवार की भूख मिटाने के लिए उठा लिया था और इसे लेकर मैं घर जा रहा था। आपने मुझे बिना माँगे ही पैसा दे दिया, इसलिए अब मुझे इस मरे पक्षी की जरूरत नहीं रही। अतएव जहाँ से उठाया वहीं लाकर डाल दिया।"

शिष्य को उसकी बात सुन कर बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने महात्मा के पास जाकर सब वृत्तान्त कहा। महात्मा बोले, "यह स्पष्ट है कि तुमने दुराचारियों के साथ मिल कर अन्यायपूर्वक धन कमाया होगा। इसीलिए उस धन का दान दुराचारी अन्धे को दिया गया और उसने उससे सुरापान और वेश्यागमन किया। मेरे न्यायपूर्वक कमाये हुए एक पैसे ने एक कुटुम्ब को निषिद्ध आहार से बचा लिया। ऐसा होना स्वाभाविक ही है। क्योंकि अच्छा पैसा ही अच्छे काम में लगता है।"  

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