सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :978-1-61301-681-7

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

सच्ची जीत

किसी गाँव में शेरसिंह नाम का एक किसान रहता था। जैसा कि नाम थावह वैसा ही भयंकर और अभिमानी भी था। वह जरा सी बात पर ही बिगड़ उठता और लड़ने के लिए तैयार हो जाता। अपनी सम्पन्नताके कारण गाँव के लोगों से सीधे मुँह बात भी नहीं करता था। वह न तो किसी के घर जाता था और न कोई उसके घर आता था। मार्ग में चलते हुए यदि कोई मिल जाय तो वह किसी का अभिवादन नहीं करता था और न किसी का अभिवादन स्वीकार करता था। उसे अहंकारी समझकर गाँव के किसानों ने भी उससे बोलना बन्द कर दिया था।

कुछ दिनों बाद उसी गाँव में एक दयाराम नाम का किसान आकर रहने लगा। वह बहुत सीधा और भला आदमी था। सबसे नम्रता से बोलता था। सब की कुछ-न-कुछ सहायता किया करता था। सभी किसान उसका आदर करते थे और अपने कामों में उससे विचार-विमर्श भी कर लिया करते थे।

एक दिन गाँव के किसानों ने उससे कहा, "भाई दयाराम! तुम कभी शेरसिंह के घर मत जाना। उससे दूर ही रहना। वह बड़ा झगड़ालू और घमण्डी है।"

दयाराम ने हँसकर कहा, "शेरसिंह ने मुझ से झगड़ा किया तो मैं उसे मार ही डालूँगा।"

उसे हँसता देख उसको समझाने वाले किसान भी हँस पड़े। वे जानते थे दयाराम बड़ा दयालु है।वह किसी को क्या मारेगा? वह तो किसी को गाली तक नहीं दे सकता था। किसी चुगलखोर ने यह बात शेरसिंह के कानों तक पहुँचा दी। शेरसिंह क्रोध से लाल हो गया। उसी दिन से वह दयाराम से झगड़ा करने का अवसर ढूँढ़ने लगा। उसने दयाराम के खेत में अपने बैल छोड़ दिये। बैल बहुत-सा खेत चर गये। दयाराम को जब पता चला तो उसने उसके बैलों को चुपचाप अपने खेत से हाँक दिया औरकिसी से कुछ नहीं बोला।

शेरसिंह ने दयाराम के खेत में जाने वाली पानी की नाली तोड़ दी। पानी बाहर बहने लगा। दयाराम ने खेत पर जाकर चुपचाप अपनी नाली ठीक कर ली। इसीप्रकार शेरसिंह बराबर दयाराम की हानि करता रहा, किन्तु दयाराम ने उसे एक बार भी झगड़ने का अवसर नहीं दिया।

एक दिन दयाराम के यहाँ उसके किसी सम्बन्धी ने मीठे लखनवी खरबूजे भेजे। दयाराम ने गाँव-भर में खरबूजे बाँटे। किन्तु शेरसिंह ने उसका खरबूजा यह कहकर लौटा दिया, "मैं भिखमंगा नहीं हूँ। खरबूजे बहुत मिलते हैं। मैं ऐसे खरबूजे नहीं लेता हूँ ।"

दिन बीतते रहे, शेरसिंह कुछ-न-कुछ खुराफात करता रहा और दयाराम चुपचाप सहता रहा। एक दिन की बात है कि शेरसिंह दूसरे गाँव से एक गाड़ी में अनाज भर कर ला रहा था। रास्ते में एक नालापार करते हुए कीचड़ में उसकी गाड़ी फँस गयी। शेरसिंह के बैल दुबले और निर्बल थे। वे कीचड़ में से गाड़ी को निकालने में असमर्थ थे।

जब गाँव में इस बात का चर्चा हुआ तो सब लोग बोले, "शेरसिंह बड़ा दुष्ट है। उसे नाले में पड़ा रहने दो।"

किन्तु दयाराम नेकुछ और सोच लिया था। उसने अपने बैलों को खोला और उनको लेकर नाले की ओर चल दिया। लोगों को जब पता चला कि दयाराम शेरसिंह की सहायता के लिए जा रहा है तो सबने उसको समझाया, "दयाराम! शेरसिंह ने तुम्हारा बहुत नुकसान किया है। तुम तो कहते थे कि यदि वह मुझ से लड़ेगा तो मैं उसे मार डालूँगा। फिर तुम आज उसकी सहायता करने क्यों जा रहे हो?"

"मैं आज सचमुच ही उसे मार डालूँगा। तुम लोग सबेरे उसे देखना।"

शेरसिंह ने दयाराम को अपने बैल लेकर आते देख गर्व से कहा, "तुम अपने बैल लेकर लौट जाओ। मुझे किसी की सहायता नहीं चाहिए।"

"देखो, तुम्हारे मन में जो आये वह करो। मुझे गाली दो, मारो। लेकिन इस समय तुम संकट में हो। तुम्हारी गाड़ी फँसी है और रात होने वाली है। इस समय मैं तुम्हारी बात नहीं मान सकता।"

यह कह कर दयाराम ने शेरसिंह के बैलों को खोल कर अपने बैल गाड़ी में जोत दिये। उसके बलवान बैलों ने गाड़ी को खींच कर नाले से बाहर निकाल दिया।

शेरसिंह अपने बैल और गाड़ी को लेकर घर आ गया। उसका दुष्ट स्वभाव उसी समय से बदल गया। वह कहता था, "दयाराम ने अपने उपकार के द्वारा मुझे मार ही दिया। अब मैं वह अहंकारी शेरसिंह नहीं रहा।"

शेरसिंह तब से सबके साथ नम्रता और प्रेम का व्यवहार करने लगा। बुराई को भलाई से जीतना ही सच्ची जीत है। दयाराम ने सच्ची जीत पाई।  

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