सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :978-1-61301-681-7

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

सर्वस्व-दान

भगवान बुद्ध भ्रमण करते हुए मगध की राजधानी में पधारे हुए थे। प्रतिदिन राजसभा में उनका प्रवचन होता था। जब वे मगध से जाने लगे तो अनेक भक्तगण उन्हें भेंट देने आये। बुद्ध एक अश्वत्थ वृक्ष के नीचे बने चबूतरे पर विराजमान थे। भक्तगण भेंट प्रस्तुत कर रहे थे और भगवान उसे स्वीकार कर रहे थे।

तभी भगवान बुद्ध ने देखा कि एक साधारण वस्त्रों में लिपटी वृद्धा भी भेंट अर्पित करने के लिए उपस्थित हुई है। वृद्धा काँपते स्वर में बोली, "भगवन् ! मैं तो निर्धन वृद्धा हूँ। मेरे पास आपको भेंट देने के लिए कुछ भी नहीं है। मुझे आज एक आम मिला है। मैं उसे काटकर आधा खा चुकी थी कि तभी मुझे मालूम हुआ कि भगवान आज प्रस्थान करने वाले हैं और आपको भेंट अर्पण की जायेगी। मैंने उसी समय आधा आम छोड़ दिया और उसी को अर्पित करने के लिए लेकर आयी हूँ। भगवन्! यही मेरी आज की एकमात्र सम्पत्ति है। कृपया इसको स्वीकार कीजिए।"

वृद्धा का हाथ भगवान तक नहीं पहुँच सकता था। भगवान तथागत भाव-विभोरहोकर चबूतरे पर से उतरकर नीचे आये। उन्होंने बड़े सम्मान से वृद्धा की ओर अपने दोनों हाथ पसारे, वृद्धा ने आम दिया और भगवान ने खुशी से स्वीकार किया। वृद्धा सन्तुष्ट भाव से अपने घर को लौट गयी।

मगध के राजा बिम्बसार यह सब देख रहे थे। उन्हें बड़ा आश्चर्य हो रहा था। आखिर अपने भावों को व्यक्त करते हुए बिम्बसार ने भगवान से पूछा, "भगवन् ! इस वृद्धा का जूठा आम प्राप्त करने के लिएआप आसन छोड़कर नीचे उतर गये और हाथ पसार दिये। मैं समझ नहीं पा रहाहूँ कि इस वृद्धा और इसकी भेंट में ऐसी क्या विशेषता है कि आपको यह कष्ट करना पड़ा?"

तथागत उस आम को पाकर प्रसन्न थे। मुस्कुरा कर उत्तर देते हुए बोले, "राजन्! क्या आपने देखा नहीं कि उस वृद्धा ने अपनी सम्पूर्ण संचित सम्पत्ति मुझे भेंट में दी है।

"आप भी कुछ समर्पित करने के लिए पधारे हैं, किन्तु इतने से फासले के लिए भी आप घोड़ा-गाड़ी के बिना नहीं आ सके। आपने नहीं देखा कि उस वृद्धा के मुख पर कितनी विनम्रता थी, कहीं अहंकार नहीं। युगों-युगों के बाद कहीं ऐसा दान मिलता है।"

बिम्बसार लज्जित हो गया।  

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