सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :978-1-61301-681-7

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

सज्जन-दुर्जन

गुरु नानक देव अक्सर घर-गृहस्थी से विरक्त होकर भ्रमण किया करते थे और जहाँ भी जाते सज्जनता, उदारता, धार्मिकता, सदाचार का उपदेश किया करते थे।

एक बार भ्रमण करते हुए वे एक गाँव में पहुँचे और एक बड़े वृक्ष के नीचे बैठ कर उपदेश देने लगे।लोग वहाँ पर आकर इकट्ठा होने लगे।

उपदेश खत्म होने पर ग्रामवासियों ने उनका स्वागत-सत्कार किया और कुछ दिन गाँव में रह कर उपदेश देने का आग्रह किया।

गुरुनानक उस गाँव के लोगोंकी सज्जनता से बड़े प्रभावित हुए और कुछ दिन वहाँ रुके भी। जब वहाँ से चलने का समय आया तो उन्होंने ग्रामवासियों को आशीर्वाद दिया, "उजड़ जाओ, मौज करो।"

उनके शिष्यों ने यह सुना तो आश्चर्यचकित रह गये। गाँववाले तो कुछ बोल ही नहीं सके। गुरु नानक उस गाँव से चल दिये और शाम होते-होते वे एक अन्य गाँव में पहुँच गये। वह गाँव लुटेरों और बदमाशों का था। वहाँ के लोगों ने आदर-सत्कार करने की जगह उनका बड़ा तिरस्कार किया। वह रात नानकदेव ने वहीं बिताई और दूसरे दिन प्रातःकाल चलते समय जो भी गाँववाले एकत्रित हुए थे उनको आशीर्वाद देते हुए उन्होंने कहा, "आबाद रहो।"

इस पर तो शिष्यों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। भले लोगों से कहना, 'उजड़ जाओ', और लुटेरों से कहना, 'आबाद रहो।' उनकी कुछ समझ में नहीं आया। एक शिष्य से नहीं रहा गया तो उसने पूछ ही लिया, "महाराज इन लुटेरों को आपने आशीर्वाद दिया, 'आबाद रहो।' और उन भले लोगों को कहा, 'उजड़ जाओ।' 'यह क्यों?' यह रहस्य हम समझ नहीं पा रहे हैं।"

गुरुजी बोले, "बड़े भोले हो। जिस गाँव के लोग भले और सज्जन थे वे अगर उजड़ कर इधर-उधर जाएँ तो जहाँ जाएँगे भला काम ही करेंगे, दूसरों को भी भला बनायेंगे। और ये लुटेरे अपने स्थान पर ही आबाद रहें तो अच्छा है, उनकी गन्दगी इधर-उधर नहीं फैलेगी, वह उनके गाँव तक ही रहेगी। इसमें मैंने ऐसी कौनसी बात कह दी जो तुम लोगों की समझ में नहीं आ रही है?" शिष्यों की समझ में उनका रहस्य आ गया और वे सन्तुष्ट हो गये।  

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