सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :978-1-61301-681-7

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

अभिमान

मुसलमानों में हज का बड़ा महत्त्व है। जो मुसलमानहज करके आता है उसका बड़ा आदर-सम्मान किया जाता है और उसे हाजी कहा जाता है। एक ऐसे ही हाजी मोहम्मद बड़े मुसलमान फकीर हुए हैं। वे अपने जीवन में साठ बार हज-यात्रा पर गये थे। वे प्रतिदिन पाँचों समय की नमाज पढ़ा करते थे। इसका उन्हें बड़ा नाज भी था।

एक रात उन्होंने स्वप्न देखा कि एक फरिश्ता जन्नत और दोजख के बीच में खड़ा है और वह मृत प्राणियों को उनके कर्मों के अनुसार जन्नत और दोजख की ओर भेज रहा है। उसी क्रम में हाजी मोहम्मद भी उसके सामने जा खड़े हुए तो उन्हें दोजख का रास्ता बता दिया गया। हाजी को यह नागवारा लगा। फरिश्ते से बोले, "मैं साठ बार हज-यात्रा पर गया हूँ।"

"हाँ, मुझे मालूम है कि आप साठ बार हज करने गये हैं। किन्तु जब मैंने आप से नाम पूछा तो आपने बड़े गर्व से कहा, 'मेरा नाम हाजी मोहम्मद है।' इतना कहने से ही तुम्हारे हज करने के पुण्य समाप्त हो गये हैं।"

हाजी मोहम्मद ने फिर कहा, "मैं साठ वर्ष से पाँचों समय की नमाज पढ़ता रहा हूँ।"

"तुम्हारा वह पुण्य भी नष्ट हो चुका है। एक बार बाहर से कोई जिज्ञासु तुम्हारे पास आये थे। तुम उनको उपदेश दे रहे थे कि नमाज का समय हो गया तो तुम नमाज पढ़ने लगे और उस दिन तुमने उन्हें दिखाने के लिए और दिनों की अपेक्षा अधिक समय तक नमाज पढ़ी थी। इस दिखावे के कारण तुम्हारा साठ वर्ष तक पाँचों समय नमाज पढ़ना भी बेकार हो गया।"

स्वप्न में हाजी को यह सुनकर धक्का लगा और उनकी नींद खुल गयी।

हाजी जी ने अपने स्वप्न पर विचार किया और उस दिन से उन्होंने गर्व करना छोड़ दिया। तब से वे सन्त जैसा जीवन बिताने लगे। लोग भले ही उन्हें हाजी मोहम्मद कहते थे, किन्तु वे स्वयं को हाजी कभी नहीं कहते थे। सादा जीवन व्यतीत करने से उनको सन्तों की श्रेणी में रखा गया।  

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