सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :978-1-61301-681-7

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

हृदय परिवर्तन

चैतन्य महाप्रभु निरन्तर भ्रमण करते रहते थे। एक बार वे अपने शिष्यों सहित भ्रमण कर रहे थे और एक नगर में जाकर कहने लगे, "बस, आज यहीं विश्रामकरेंगे।"

नगर के लोगों को जब पताचला कि चैतन्य महाप्रभु ने नगर में डेरा डाला है तो लोगों की भीड़ उनके दर्शनों के लिए उमड़ने लगी। चैतन्य ने एक व्यक्ति से पूछ लिया, "इस नगर में सबसे अधिक दुष्ट व्यक्ति कौन है?"

उसने कहा, "महाप्रभु! ऐसा तो एक मघई ही है।"

अन्य उपस्थित लोगों ने भी उसकी बात की पुष्टि कर दी तो महाप्रभु ने अपने शिष्यों से कहा, "जाओ, मघई का पता कर उसे बुला लाओ।"

शिष्य जब मघईके पास पहुँचे तो उस समय वह किसी मित्र के साथ बैठा मदिरापान कर रहा था। शिष्यों ने उसको महाप्रभु का सन्देश सुनाया तो मघई को क्रोध आ गया। उसने नशे में शराब की बोतल उठाई और सन्देश सुनाने वाले शिष्य के सिर पर दे मारी। शिष्य लहूलुहान हो गया।

महाप्रभु को सारी बात का पता चला। शिष्य के उपचार की व्यवस्था हुई।महाप्रभु ने दस-बारह शिष्यों को फिर आदेश दिया कि मघई जहाँ भी और जिस स्थिति में भी हो, उसको पकड़ कर मेरे पास लाओ।

इस बार मघई ने बोतल नहीं मारी, किन्तु सरलता से साथ भी नहीं आया। वह नशे में चूर था। शिष्य उसको पकड़ कर खींच कर महाप्रभु के पास ले आये। महाप्रभु ने एक गद्देदार बिस्तर तैयार करवा रखा था। मघई के आते ही उसको उस बिस्तर पर लिटा दिया गया।

मघई तो सोच रहा था कि उसको कठोर दण्ड दिया जायेगा किन्तु यहाँ तो दूसरा ही दृश्य था। इतना ही नहीं स्वयं महाप्रभु उसके पास आये और उसके पास बैठ गये। मघई को और आश्चर्य हुआ। तभी महाप्रभु ने उसके पैरों की पिण्डलियोंपर इस प्रकार हाथ रखे जैसे कि वे उनको दबाना चाह रहे हों। यह देख कर मघई उठ कर बैठ गया। अब उसमें घबराहट थी।

मघई का नशा चूर-चूर हो गया था। उसके नेत्रों से आँसू बहने लगे थे। चैतन्य महाप्रभु के व्यक्तित्व के विषय में उसने खूब सुन रखा था। उसने अपने गन्दे हाथों से महाप्रभु के हाथों को अपने पैर से परे करते हुए कहा, "महाराज! मैं तो बड़ा पापी हूँ। मैंने अनेक अपराध किये हैं। अभी-अभी मैंने एक सन्त के सिर पर बोतल मारी थी। मैं सोच रहा था कि आप मुझे उसका दण्ड देंगे। किन्तु आपने तो अपने हाथों से मेरे शरीर को स्पर्श करके अपने को अपवित्र कर लिया है।"

महाप्रभु के स्पर्श से मघई के शरीर में विचित्र अनुभूति-सी होने लगी थी। वह बिस्तर से नीचे उतर गया और महाप्रभु के चरणों में लोट गया। उसकी एकदम काया ही पलट गयी थी। अब वह पहले जैसा मघई नहीं रह गया था।

मघई के भीतर आत्मग्लानि उत्पन्न हुई, उसने स्वयं को सुधारने का मन ही मननिश्चय किया। उसे अपने सभी दुष्कृत्य एक-एक कर याद आ रहे थे। महाप्रभु के स्पर्श से उसका उद्धार हो गया था। कालान्तर में वही मघई चैतन्य महाप्रभु का सर्वश्रेष्ठ शिष्य बन गया था।  

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