नई पुस्तकें >> प्रेरक कहानियाँ प्रेरक कहानियाँडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह
ईमानदारी
ईसाइयों में सन्त ईसप का नाम बड़ा और प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म किसी दास परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा दास होने के कारण, भले नहीं हो पायी हो किन्तु सच्चरित्रता और नीति का उनमें अभाव नहीं था।
ईसप जब युवा हो गये तो उनका स्वामी उनको बेचने के लिए बाजार में ले गया। साथ में दो अन्य दास युवक भी थे। तीनों जब बाजार में बेचने के लिए खड़े किये गये तो ईसप के सौभाग्य से प्रसिद्ध दार्शनिक सर जानसन उधर से निकल रहे थे। उन्हें भी एक दास की आवश्यकता थी। उन्होंने दासों के स्वामी से कहा, "मैं एक दास खरीदना चाहता हूँ।"
उसने तीनों की ओर संकेत करते हुए कहा, "इनमें से जो भी आपको पसन्द हो, खरीद लीजिए।"
जानसन ने एक दास से पूछा, "तुम क्या-क्या कर सकते हो?"
"कोई भी काम कर सकता हूँ।"दास ने उत्तर दिया। जानसन ने दूसरे दास से पूछा, "तुम क्या-क्या कर सकते हो?"
"मैं हर काम कर सकता हूँ।"उसने उत्तर में कहा।
अब ईसप की बारी आयी। जानसन ने उनसे भी पूछा, "क्या-क्या कर सकते हो?"
ईसपने कहा, "श्रीमान् ! पहला दास कोई भी काम कर सकता है और दूसरा दास हर काम को कर सकता है, तब भला मेरे करने के लिए बचता ही क्या है?"
ईसप द्वारा दिये गये इस होशियारी-भरे उत्तर से सर जानसन बड़े प्रभावित हुए और पुनः प्रश्न किया, "यदि मैं तुम्हें खरीद लूँ तो क्या तुम ईमानदारी से काम करोगे?"
"सर! आप मुझे खरीदें या न खरीदें किन्तु ईमानदार तो मैं सदा ही रहूँगा।"ईसप का सपाट उत्तर था।
उसका उत्तर सुनते ही सर जानसन ने उसे खरीद लिया। ईसप की प्रामाणिकता, नैतिकता और कार्यकुशलता आदि अनेक गुणों को देख कर जानसन ने उन्हें अनेक सुविधाएँ प्रदान की। उनको पढ़ने-लिखने का अवसर सुलभ कराया। कालान्तर में ईसप एक महान सन्त के रूप में प्रसिद्ध हुए।
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