नई पुस्तकें >> गीले पंख गीले पंखरामानन्द दोषी
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श्री रामानन्द 'दोषी' के काव्य-संग्रह ‘गीले पंख' में 33 कविताएं हैं…
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बीच में हमारे
बीच में हमारे एक दुनिया की दूरी है,
दुनिया न किन्तु मेरी तेरे बिन पूरी है !
जीवन है एक राह, चाह एक इशारा है,
श्वास एक पंथी है, चल-चल के हारा है;
सत्य एक धोखा है, मौत एक बहाना है --
है मंज़िल थकान, कहीं आना न जाना है;
फिर भी मन भटकता है, कौन मजबूरी है ?
बीच में हमारे मजबूरी की दूरी है !
आर-पार धार के दो बेबस किनारे हैं,
किरणों की बाला पर पहरे अंधियारे हैं;
तृप्ति की पराजय को मन क्यों अकुलाता है --
मेरा औ' तेरा बस प्यास एक नाता है;
भोर भेंट पाती नहीं संध्या सिंदूरी है,
बीच में हमारे एक रजनी की दूरी है !
सरिता समर्पित हैं, सिन्धु सकुचाया है,
दूर हँसा चन्दा, तब कहीं ज्वार आया है;
रूठ कर न बैठ, चल, चलना ज़िन्दगानी है--
जब तक प्रवाह, पानी तब तक ही पानी है;
भावना-विहीन, प्राण, साधना अधूरी है,
बीच हम दोनों के भावना की दूरी है !
द्वार-द्वार खोज फिरा, मेरे द्वार आईं तुम,
दूर क्षितिज दृष्टि मेरी, मेरी परछाईं तुम;
दाह अलग चीज़, अलग चीज़ एक अँगारा है --
दाह से न तुष्ट व्यक्ति, इससे ही हारा है;
अग-जग है भटका मृग, पास कस्तूरी है,
बीच में निकटता ही केवल एक दूरी है !
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