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गीले पंख

रामानन्द दोषी

प्रकाशक : आत्माराम एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 1959
पृष्ठ :90
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15462
आईएसबीएन :0

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श्री रामानन्द 'दोषी' के काव्य-संग्रह ‘गीले पंख' में 33 कविताएं हैं…


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तुम मुझे मिलीं


कि तुम मुझे मिलीं, मिला विहान को नया सृजन,
कि दीप को प्रकाश-रेख, चाँद को नई किरन !

कि स्वप्न सेज साँवरी सरस सलज सजा रही,
कि साँस में सुहासिनी सिहर-सिमट समा रही;
कि साँझ का सुहाग माँग में निखर उभर उठा --
कि गन्धयुक्त केश में बँधा पवन सिहर उठा;
कि प्यार-पीर में विभोर बन चली कली सुमन !

कि तुम मुझे मिलीं, मिला विहान को नया सृजन,
कि दीप को प्रकाश-रेख, चाँद को नई किरन !

अनभ्र रूप-कुंज में असंख्य पुष्प खिल उठे,
कि जब सुवास-सिक्त तव अधर अधीर हिल उठे;
हिले अधर मदिर, मगर न मौन हो सका मुखर
न अंगुलियां शिथिल हुईं, न तार ही सके बिखर;
कि इस मिलन महान को निहारता रहा गगन ! '
 
कि तुम मुझे मिलीं, मिला विहान का नया सृजन,
कि दीप को प्रकाश-रेख, चाँद को नई किरन !

कि प्राण पाँव में भरो, भरो प्रवाह राह में;
कि आस में उछाह सम बसो सजीव चाह में;
कि रोम-रोम रम रहो सरोज में सुवास-सी
कि नैन-कोर छुप रहो असीम रूप-प्यास-सी;
अबाध अंग-अंग में उफान बन उठो, सजनि !

कि तुम मुझे मिलो, मिले विहान को नया सृजन,
कि दीप को प्रकाश-रेख, चाँद को नई किरन !

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