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गीले पंख

रामानन्द दोषी

प्रकाशक : आत्माराम एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 1959
पृष्ठ :90
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15462
आईएसबीएन :0

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श्री रामानन्द 'दोषी' के काव्य-संग्रह ‘गीले पंख' में 33 कविताएं हैं…


22

दृष्ट, दृष्टि और कोण


किसी को है पच
और किसी को कुपच,
पर बात यह सच -
चाहे हो थाली का,
चाहे हो डाली का,
बैंगन,
सिर्फ़ बैंगन है।
जैसे बनाओ,
वह जाता बन है।
 
चाहे उसे छौंक लो
चाहे करो भरता,
कोई खा कर जीता उसे,
कोई खा कर मरता।

झूठ मत समझ इसे,
बात यह सच है
बैंगन स्वयं में
न पच, न कुपच है।

इसलिए सुन तात,
मूल बात
दृष्टिकोण !

एक शिष्य अर्जुन था,
(क्या उस ही में गुन था ?)
एक शिष्य एकलव्य,
(धनुर्धर, वीर, भव्य !)
एकगुरु द्रोण
वही उनकी दृष्टि,
किन्तु,
भिन्न-भिन्न कोण !

इतिहास है गवाह
दुनिया की अजब राह !
काँटों को मुक्त किया
पँखुरी बाँधी
मारे गए ईसा और गाँधी।
दुष्टों को प्यार मिला,
साधुओं का बहा शोण।

इसी लिए कहता हूँ
सुन तात,
मूल बात,
दृष्टिकोण !

अम्बर में चाँद खिला
एक गोरी जल गई,
हो एक शीतल गई;
चैन की साँस ले
हम बोले -
अच्छा हुआ, दिन ढला,
काम करने की घड़ी टल गई !
एक तथ्य,
सौ कथ्य !
बात एक,
मत अनेक,
रुचि अनेक !

तथ्य है तटस्थ और निरपेक्ष
दृष्टिकोण रागलिप्त, सापेक्ष।

निष्कर्ष—
मुश्किल तो अपने से अपना 'डिफेन्स' है
बड़ा कठिन रखना बैलेंस है।
दोष नहीं दृष्टि का,
दोष नहीं दृष्ट का,
दोषी तो लैंस है !

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