नई पुस्तकें >> गीले पंख गीले पंखरामानन्द दोषी
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श्री रामानन्द 'दोषी' के काव्य-संग्रह ‘गीले पंख' में 33 कविताएं हैं…
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कौन खड़ी शरमाई हो तुम ?
कौन खड़ी शरमाई हो तुम,
मेरी रीती गागर भरने
कौन अपरिचित आई हो तुम ?
किस से पवन खेलता चंचल
रह-रह उड़ता किस का अंचल
किस सजनी से करना सीखा --
दीपों ने शलभों को पागल?
किस दीपक की स्वर्णिम आभा,
मौन मदिर अलसाई हो तुम ?
कौन खड़ी शरमाई हो तुम ?
सतरंगी रस - गागर छलकें,
लहर - लहर लहराती अलकें;
नीले सागर की शैया पर -
झुक-झुक झूम झिपी हैं पलकें;
उन पलकों की ओट सिमट कर
कौन सलज मुसकाई हो तुम ?
कौन खड़ी शरमाई हो तुम ?
उठ-उठ गिरता झीना घूँघट,
आते-आते खो जाता तट;
प्यासी ही रह जाती आँखें -
प्यासा ही रह जाता पनघट;
किस हल्की बदली से उलझी
पूनम की अँगड़ाई हो तुम ?
कौन खड़ी शरमाई हो तुम ?
कौन नयन में भर कर सावन,
अधरों में धीमा-सा कंपन;
अस्फुट स्वर में कह जाती हो --
"रुक न सकोगे दो क्षण पाहुन ?"
किस के प्राणों में लय होने
बेबस-सी सकुचाई हो तुम ?
कौन खड़ी शरमाई हो तुम ?
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