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गीले पंख

रामानन्द दोषी

प्रकाशक : आत्माराम एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 1959
पृष्ठ :90
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15462
आईएसबीएन :0

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श्री रामानन्द 'दोषी' के काव्य-संग्रह ‘गीले पंख' में 33 कविताएं हैं…


5

लेकिन पहले...


बीते युग के वैभव को भी पूजा का अर्घ्य चढ़ाऊंगा,
लेकिन पहले, नव ऊषा का श्रृंगार मुझे कर लेने दो !
मैं आने वाले कल के भी स्वागत में पलक बिछाऊँगा --
लेकिन पहले, इस वर्तमान से प्यार मुझे कर लेने दो !

चुन चुन कर नीड़ बनाने में,
औ' पंछी के उड़ जाने में,
केवल दो डग का अन्तर है
प्रिय, खिलने और मुरझाने में;

जब यह मधुमास नहीं होगा,
अधरों पर हास नहीं होगा,
उन बदली हुई निगाहों पर,
तुम को विश्वास नहीं होगा;

जब आँखों का सारा काजल,

कटु अन्तर-पीड़ा से गल गल,
इन नरम गुलाबी गालों पर --
आँसू सँग आयेगा ढल ढल,

तब मैं उन करुण गुहारों को,

उन बेबस मौन पुकारों को,
निज आलिंगन में भर, सुहाग-बिंदिया देने कल आऊँगा,
लेकिन पहले, निज बाँहों का विस्तार मुझे कर लेने दो !
इस वर्तमान से प्यार मुझे कर लेने दो !

कुछ ज़ाहिर, कुछ चोराचोरी,
कस गई प्रीति-रेशम-डोरी,
मैं ने जिस को सम्बल माना --
थी मेरे मन की कमजोरी;

मुझ से ही क्या कम दोष हुआ,
चेताने पर कब होश हुआ;
मिल सकी क्षमा कब उसे, जिसे
निज पीड़ा से सन्तोष हुआ ?

मेरे घावों को सहलाने,
सपनों ही में यदि सिरहाने,
तुम आ बैठी, जग क्रूर हँसा --
कर कुटिल इशारे मनमाने,

अपने-जैसे बेहालों पर,
इस पथ से जाने वालों पर,
आरोप लगा, चर्चाएँ कर, कल मैं शायद खुश हो लूंगा,
लेकिन पहले, निज भूलों का प्रतिकार मुझे कर लेने दो !
नव ऊषा का श्रृंगार मुझे कर लेने दो !

मैं स्वर में, वह सन्धानों में,
मैं पीड़ा में, वह प्राणों में;
मैं मन्दिर-मस्जिद खोज थका --
वह छिपा रहा मयखानों में;

मयखाने का एक दीवाना,
बोला मुझ से-- "सुनते जाना,
इस पथ का अथ कुछ याद नहों,
पर अन्त कहाँ है, बतलाना ?"

मैं क्या उत्तर दूं, बतलाऊँ,
क्या दीवानों को समझाऊँ,
उलटे-सुलटे दूं समाधान --
या इन प्रश्नों को पी जाऊँ?

तुम मुझ में यह साहस भर दो !
मेरी वाणी को यह स्वर दो !
कह सकूँ-"तुम्हारा अँधियारा कल पीने निश्चय आऊँगा--
लेकिन पहले, निज अन्तर में उजियार मुझे भर लेने दो !"
इस वर्तमान से प्यार मुझे कर लेने दो।

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