नई पुस्तकें >> गीले पंख गीले पंखरामानन्द दोषी
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श्री रामानन्द 'दोषी' के काव्य-संग्रह ‘गीले पंख' में 33 कविताएं हैं…
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शायद
एक टूटी-सी हिचकी, मेरी याद तुम्हें हो आई शायद !
जुड़ पाया सुधियों का मेला,
कैसे तिमिर किरन सँग खेला;
कैसे मीत प्रीत को भूले --
साथ रहा बस दर्द अकेला;
उस सूनी बँसवट के पीछे --
बड़े बड़े दृग आधे मींचे --
अनजाने यह कथा व्यथा की तुम ने ही दोहराई शायद !
भीगे-भीगे पंख पसारे,
धौले, धूमिल, घन कजरारे;
मेघों के तिर आये पंछी --
अपनी अपनी पाँत सँवारे;
उझक झरोखे चंदा झाँका --
किसी सलज चितवन-सा बाँका--
यह पँचरंगी चूनर अम्बर में तुम ने फहराई शायद !
नभ से बूंद-फुहारे छूटे,
सरिता के तट-बन्धन टूटे;
ऐसे में आँसू के बन कर --
जल में कई बताशे फूटे;
झिलमिल-सी उन में परछाईं--
देख विवश-सी तुम मुसकाईं--
सूनी सूनी मांग सिंदूरी हो कर फिर अकुलाई शायद !
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