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प्रतिभार्चन - आरक्षण बावनी

सारंग त्रिपाठी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 1985
पृष्ठ :40
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15464
आईएसबीएन :0

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५२ छन्दों में आरक्षण की व्यर्थता और अनावश्यकता….

शुभ-संदेश

आरक्षण की बैसाखी हमेशा इस्तेमाल करेंगे तो इससे समाज की अवनति ही होने वाली है। क्योंकि सम्बधित पिछड़ा समाज इस बैसाखी पर इतना अवलम्बित हो जायेगा कि वह अपने पैरों से कभी खड़ा नहीं हो सकेगा। एक सीमित समय तक यह बैसाखी आवश्यक थी परन्तु अब समय आ गया है कि इसका पूर्ण रूप से त्याग किया जाय। कायस्थ महापरिवार ने आरक्षण नीति से बहुत दुःख पाया है और अव स्वाभाविक है कि यह बुद्धिजीवी समाज इसका विरोध करेगा।

कविवर श्री सारंग त्रिपाठी द्वारा विरचित एवं चित्रांश श्री शुकदेव राय सिन्हा द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में इस विषय पर विवेचन बहुत उपयुक्त है और समय का तकाजा है कि इनके विचारों पर ध्यान पूर्वक अवलोकन कर समाज को नई दिशा दी जाय। श्री सारंग त्रिपाठी एवं श्री सिन्हा साहब की इस पुस्तक की सफलता की कामना करता हूँ।

डॉ. रतन चन्द्र वर्मा
एम. बी. बी. एस., एफ. आर. सी. एस. (इग्लैंड)
अध्यक्ष अखिल भारतीय कायस्थ महासभा
120 धार रोड, इंदौर, म. प्र.

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