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प्रतिभार्चन - आरक्षण बावनी

सारंग त्रिपाठी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 1985
पृष्ठ :40
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15464
आईएसबीएन :0

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५२ छन्दों में आरक्षण की व्यर्थता और अनावश्यकता….

प्रथम प्रकाशकीय वक्तव्य

मुक्तक-सम्राट कविवर श्री सारंग त्रिपाठी द्वारा प्रणीत प्रतिभार्चन के मुक्तक अत्यन्त हृदय स्पर्शी सीधे सरल किन्तु कहीं-कहीं व्यंग्य पूर्ण उक्तियाँ गागर में सागर की भांति अपने में पूर्ण सहृदयों को आनन्दित, आन्दोलित एवं प्रेरित करने में सर्वथा समर्थ हैं। कृति जातीय संकीर्णताओं के उन्मूलन, राष्ट्रीयएकता एवं अखण्डता की रक्षा के हेतु प्रेरणा प्रद है। इसका प्रत्येक मुक्तक हमें तथा हमारी संस्थाको इसके प्रकाशन हेतु प्रोत्साहित कर रहा है। वस्तुतः इसका षष्टम संस्करण प्रस्तुत करते हुए अपार हर्ष हो रहा है। क्योंकि देश के विभिन्न भागों में कृति का सर्वत्र समादर हुआ है।

आज प्रतिभा की उपेक्षा से देश का प्रशासन एवं व्यवस्था पंगु सी होती जा रही है। किसी देश के वैज्ञानिक, कवि, साहित्यकार, चित्रकार संगीतकार, पत्रकार चिकित्सक आरक्षणवादी व्यवस्था से नहीं वरन् प्रतिभा से ही निर्मित होते हैं। अस्तु आरक्षण का जातीय आधार सर्वथा खोखला है। इससे आरक्षित एवं अनारक्षित दोनों ही वर्गों की हानि ही है।

कवि ने उपयुक्त तथ्य को कबीर की सी निर्भीकता स्पष्टता एवं सरलता से व्यक्त किया है। यही कारण है कि इसका प्रत्येक मुक्तक बुद्धिजीवी समाज का कंठहार बन गया है। मेरा विश्वास है कि प्रतिभार्चन (आरक्षण बावनी) प्रतिभाओं में व्याप्त कुण्ठा का निवारण कर उसके विकास में सहायक होगी।

मैं व्यक्तिगत रूप से एवं राष्ट्रीय प्रतिभा संरक्षण समन्वय समिति की ओर से, भाई श्री सारंग जी को हृदय से बधाई देते हुए उनके उद्देश्य की सफलता की कामना करता हूँ।

सुन्दर लाल पाण्डेय
महामंत्री राष्ट्रीय प्रतिभा संरक्षण समन्वय समिति
तुलसीनगर, काकादेव, कानपुर

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