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बोलती दीवारें (सद्वाक्य-संग्रह)

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15477
आईएसबीएन :00000

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सद् वाक्यों का अनुपम संग्रह

उद् बोधन हेतु गेय वाक्य

  • अगर रोकनी है बर्बादी,
    बंद करो खर्चीली शादी।

  • अधिक कमायें अधिक उगायें,
    लेकिन बाँट-बाँटकर खाएँ।

  • अधिकारों का वह हकदार,
    जिसको कर्तव्यों से प्यार।

  • अनाचार बढ़ता है कब,
    सदाचार चुप रहता जब।

  • अपना-अपना करो सुधार,
    तभी मिटेगा भ्रष्टाचार।

  • अपनी गलती आप सुधारें,
    अपनी प्रतिभा आप निखारें।

  • अहं प्रदर्शन झूठी शान,
    ये सब बचकाने अरमान।

  • इक्कीसवीं सदी-उज्ज्वल भविष्य।

  • ईश न्याय दृढ़ खरा अटल,
    वहाँ न रिश्वत-घूस सफल।

  • ईश्वर के घर लगती देर,
    किन्तु नहीं होता अन्धेर।

  • ईश्वर तो है केवल एक,
    लेकिन उसके नाम अनेक।

  • ईश्वर ने इन्सान बनाया,
    ऊँच-नीच किसने उपजाया।

  • ईश्वर बंद नहीं है मठ में,
    वह तो व्याप रहा घट-घट में।

  • एक पिता की सब संतान,
    नर और नारी एक समान।

  • एक बनेंगे नेक बनेंगे,
    स्वस्थ बनेंगे सभ्य बनेंगे।

  • कथनी करनी भिन्न जहाँ है,
    धर्म नहीं, पाखण्ड वहाँ है।

  • कदम क्रान्ति के नहीं रुकेंगे,
    बेटे-बेटी नहीं बिकेंगे।

  • करते वही राष्ट्र उत्थान,
    जिनको है चरित्र का ध्यान।

  • करते वृक्ष प्रदूषण दूर,
    देते हैं वर्षा भरपूर।

  • करो नहीं ऐसा व्यवहार,
    जो न स्वयं को हो स्वीकार।

  • कौन हरे धरती का भार,
    निष्कलंक प्रज्ञावतार।

  • खोजें सभी जगह अच्छाई,
    ऐसी दृष्टि सदा सुखदायी।

  • गंदे चित्र लगाओ मत,
    नारी को लजाओ मत।

  • गंदे फूहड़ गीत न गाओ,
    मर्यादा समझो, शरमाओ।

  • गंदे फूहड़ चित्र हटाओ,
    माँ-बहिनों की लाज बचाओ।

  • गन्दे गाने गाओ मत,
    नारी को लजाओ मत।

  • गन्दे गाने गाओ मत,
    बच्चों को भटकाओ मत।

  • घर में टंगे  हुए जो चित्र,
    घोषित करते व्यक्ति-चरित्र।

  • चाटुकार को जिसने पाला,
    उस नेता का पिटा दीवाला।

  • चित्र काव्य संगीत कला,
    रहें स्वस्थ, है तभी भला।

  • जनमानस बदलेंगे कौन,
    जो कर सकते सेवा मौन।

  • जब तक नहीं चरित्र विकास,
    तब-तब कर्मकाण्ड उपहास।

  • जहाँ जन्म से जाति जुड़ी है,
    वहाँ मनुजता ध्वस्त पड़ी है।

  • जहाँ हृदय परमार्थ परायण,
    वहाँ प्रकट नर में नारायण।

  • जागो शक्तिस्वरूपा नारी,
    तुम हो दिव्य क्रान्ति चिनगारी।

  • जाति पाति का घातक रोग,
    करता विफल एकता योग।

  • जाति-पाँति का घातकरोग,
    करता विफल एकता-योग।

  • जाति-वर्ण जंजाल जहाँ है,
    समता नहीं बवाल वहाँ है।

  • जिसने बेच दिया ईमान,
    उनका करें नहीं गुणगान।

  • जिसने बेच दिया ईमान,
    करो नहीं उसका गुणगान।

  • जीव और वन से जीवन है,
    बस्ती का जीवन उपवन है।

  • जीवन उनका बना महान् ,
    जिनका हर क्षण रत्न समान।

  • जीवन यज्ञ विश्व हित धर्म,
    आहुतियाँ दैनिक शुभ कर्म।

  • जुआ खेलने का यह फल,
    रोते फिरे युधिष्ठिर-नल।

  • जेवर नहीं बैंक का खाता,
    संचित धन को सफल बनाता।

  • जैसी करनी वैसा फल,
    आज नहीं तो निश्चय कल।

  • जो उपहास-विरोध पचाते,
    वे ही नया कार्य कर पाते।

  • जो करता है आत्म सुधार, मिलता उसको ही प्रभु प्यार।

  • जो कुछ बच्चों को सिखलाते, उसे स्वयं कितना अपनाते?

  • जो न कर सके जन कल्याण, उस नर से अच्छा पाषाण।

  • दुर्गुण त्यागो बनो उदार, यही मुक्ति सुरपुर का द्वार।

  • दुर्व्यसनों से पिण्ड छुड़ायें, स्वस्थ बनें सुख-संपत्ति पायें।

  • धनबल जनबल बुद्धि अपार, सदाचार बिन सब बेकार।

  • धर्मक्षेत्र में पूज्य वही नर, त्यागे लोभ स्वार्थ आडम्बर।

  • धुत्त नशे में जो रहता है, संकट खड़े रोज करता है।

  • नशा नाश की जड़ है भाई, इससे दूर रहो हे भाई।।

  • नशा बड़ा ही है शैतान, हमें बना देता हैवान।

  • नशे को दूर भगाना है, खुशहाली को लाना है।

  • नारियो जागो-अपने को पहचानो।

  • नारी का असली श्रृंगार, सादा जीवन उच्च विचार।

  • नारी का सम्मान जहाँ है, संस्कृति का उत्थान वहाँ है।

  • नारी के हैं रूप अनेक, ब्रह्मा, विष्णु और महेश।

  • नियमित और संयमित जीवन, हमको देता है चिर यौवन।

  • परम्पराएँ नहीं प्रधान, हो विवेक का ही सम्मान।

  • परहित सबसे ऊँचा कर्म, ममता-समता मानव धर्म।

  • पशुबलि झाड़ फेंक जंजाल, इनसे बचे वही खुशहाल।

  • पाण्डव पाँच हमें स्वीकार, सौ कौरव धरती के भार।

  • पिटती पत्नी बिकते जेवर, छोड़ शराबी ऐसे तेवर।

  • पुलिस-अदालत है आसान, किन्तु अटल है ईश विधान।

  • पूत-सपूत वही कहलाता, जो स्वदेश का मान बढ़ाता।

  • प्रजनन रोकें वृक्ष लगायें, शिक्षा औ सहकार बढ़ायें।

  • प्रभु के बेटे प्रेम सिखाते, निहित स्वार्थ दंगे भड़काते।

  • फूहड़ गाने, गंदे चित्र, इनसे दूर रहो हे मित्र।

  • बढ़ते जिससे मनोविकार, ऐसी कला नरक का द्वार।

  • बना इंद्रियों का जो दास, उसका कौन करे विश्वास।

  • बने युवक सज्जन शालीन, दें समाज को दिशा नवीन।

  • बनो न फैशन के दीवाने, करो आचरण मत मनमाने।

  • बहुत सरल उपदेश सुनाना, किन्तु कठिन करके दिखलाना।

  • भारत माँ की असली जय, शोषित-दलित समाज उदय।

  • मंदिर में युगधर्म पले, जन जागृति की ज्योति जले।

  • मदिरा पीने में क्या शान, गली-गली होता अपमान।।

  • मदिरा, मांस, तामसी भोजन, दूषित करते तन-मन-जीवन।

  • महाकाल की यही पुकार, बन्द करो सब भ्रष्टाचार।

  • मांस मदिरा बीड़ी-पान, असुर तत्त्व की है पहचान।

  • मान मिटा संपत्ति नशानी, नशेबाज की यही कहानी।

  • मानव मात्र एक समान, एक पिता की सब संतान।

  • मानवता की ज्योति जलाएँ, जाति-धर्म मत-भेद भुलाएँ।

  • मानवता की यही पुकार, रोको नारी अत्याचार।

  • मानवता के दो आधार, सादा जीवन उच्च विचार।

  • मानव-समता के प्रिय मानक, बुद्ध मुहम्मद ईसा नानक।

  • मिलता है उसको प्रभु प्यार, जो करता है आत्म-सुधार

  • यदि सुख से चाहो तुम जीना, कभी भूलकर मद्य न पीना।

  • यही सिद्धि का सच्चा मर्म, भाग्यवाद तज करो सुकर्म।

  • रहे जहाँ नारी सम्मान, बनता है वह देश महान्।

  • लकड़ी छाया दवा फूल फल, देते वृक्ष विशुद्ध वायु-जल।

  • लघु सेवा तरु हमसे लेते, अमित लाभ जीवन भर देते।

  • लोभ स्वार्थ भोजन का धंधा, करता धर्मक्षेत्र को गंदा।

  • वन रोपें, उद्यान लगाएँ, हरा-भरा निज देश बनाएँ।

  • वन-उपवन कह रहे पुकार, देते हम जल की बौछार

  • वही दिखाते सच्ची गृह, जिन्हें न पद्-पैसे की चाह।

  • वही व्यक्ति है चतुर सुजान, जिसकी हो सीमित संतान।

  • वही व्यक्ति है सच्चा संत, जिसके स्वार्थ अहं का अन्त।

  • वृक्ष और हितकारी सन्त, हैं इनके उपकार अनन्त।

  • वृक्ष प्रदूषण-विष पी जाते, पर्यावरण पवित्र बनाते।

  • वृक्ष सभी का स्वागत करते, दे फल-फूल पंथ-श्रम हरते।

  • वृक्षारोपण कार्य महान्, एक वृक्ष दस पुत्र समान।

  • वृक्षारोपण युग अभियान, प्रजनन-संयम पुण्य महान्।

  • व्यसनों की लत जिसने डारी, अपने पैर कुल्हाड़ी मारी।

  • शासक जहाँ चरित्र विहीन, वहीं आपदा नित्य नवीन।

  • शिक्षा समझो वही सफल, जो कर दे आचार विमल।

  • शिल्पी-श्रमिक-किसान-जवान, ये हैं पृथ्वी पुत्र महान्।

  • शुभ अवसरका भोजन ठीक, मृतक-भोज है अशुभ अलीक।

  • शुभ शासककी यह पहिचान, शोषक शमन सृजन सम्मान।

  • संकट हो या दु:ख महान्, हर क्षण ओठों पर मुस्कान।

  • संभाषण के गुण हैं तीन, वाणी सत्य सरल शालीन।

  • सतयुग आयेगा कब, बहुमत चाहेगा जब।

  • सद्गुण है सच्ची संपत्ति, दुर्गुण सबसे बड़ी विपत्ति।

  • सद्गुण है सच्ची संपत्ति, दुर्गुण सबसे बड़ी विपत्ति।

  • सद्गृहस्थ का साधक जीवन, संयम-सेवा भरा तपोवन।

  • सफल ज्ञान का फल आचार, कोरा ज्ञान बुद्धि का भार।

  • सही धर्म का सच्चा नारा, प्रेम एकता भाई चारा।

  • सात्विक भोजन जो करते हैं, रोग सदा उनसे डरते हैं।

  • सिर अनीति को नहीं झुकाएँ, चाहे प्राण भले ही जाएँ।

  • सिर पर बाँध कफन लड़ेंगे, दुष्वृत्तियाँ दफन करेंगे।

  • सुधरें व्यक्ति और परिवार, होगा तभी समाज सुधार।

  • सोचो समझो बचो नशे से, जीवन जियो बड़े मजे से।

  • हँसना सीखें सृजन विचारें, आशा रखें भविष्य सुधारें।

  • हम बदलेंगे युग बदलेगा, हम सुधरेंगे युग सुधरेगा।

  • हम बदलेंगे युग बदलेगा, हम सुधरेंगे युग सुधरेगा।

  • हमारा है यह लक्ष्य महान्, बने यह धरती स्वर्ग समान।

  • हर नारी देवी कहलाए, अबला क्यों ? सबला कहलाए  

  • हरियाली भूतल-श्रृंगार, जहाँ वृक्ष हैं, वहीं बहार।

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