आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री की असंख्य शक्तियाँ गायत्री की असंख्य शक्तियाँश्रीराम शर्मा आचार्य
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गायत्री की शक्तियों का विस्तृत विवेचन
अकारादिज्ञकारांता
'अ' से लेकर 'ज्ञ' अक्षरों तक की वर्णमाला है। स्वर यंत्र से लेकर नाभि स्थान तक अवस्थित सूक्ष्म उपत्यकाओं में से निरंतर निकलती रहने वाली ध्वनियों के आधार पर विनिर्मित हुई है। इन ५४ ध्वनियों को कंठ से नाभि तक स्थित इन उपत्यकाओं में सन्निहित अनेक सदगुणों एवं सत्प्रवृत्तियों का बीज मंत्र समझना चाहिए। देवनागरी लिपि के स्वर व्यंजनों की बनी वर्णमाला भी एक प्रकार की मंत्र साधना है। इस वर्णमाला को बालक जब बार-बार पढ़ते हैं तो उसमें न अक्षरों से संबंधित देव शक्तियाँ जाग्रत होती हैं। इसलिए इसे देवनागरी लिपि कहते हैं। इस वर्णमाला के ५४ अक्षरों के लिए एकबार कंठ से नाभि तक आने और दूसरी बार नाभि से कंठ तक लौटने में ५४+५४=१०८ की संख्या हो जाती है। माला में १०८ दाने होने का भी यही रहस्य है। देवनागरी वर्णमाला से संबंधित सभी ५४ शक्तियाँ गायत्री स्वरूप हैं। इसलिए गायत्री को 'अकारादिज्ञकारांता' माना गया है।
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