आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री की असंख्य शक्तियाँ गायत्री की असंख्य शक्तियाँश्रीराम शर्मा आचार्य
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गायत्री की शक्तियों का विस्तृत विवेचन
अजा
उसका जन्म कभी नहीं होता। परमात्मा की अभिन्न सत्ता होने के कारण वह भी परमात्मा के समान ही अजन्मा है। उसका कोई आरंभ काल नहीं। जिस प्रकार सूर्य में उष्णता ओत-प्रोत है, उसी प्रकार ब्रह्म में जो चेतनता समाई हुई है उसे गायत्री कहते हैं। साक्षी, दृष्टा, निर्विकार ब्रह्म में जो सक्रियता, विधि-व्यवस्था, भावना, आकांक्षा दिखाई देती है; सत् के साथ जो चित् आनंद जुड़ा हुआ है उसका कारण गायत्री महाशक्ति को ही समझना चाहिए। वह जन्मने व मरने वाली साधारण वस्तु नहीं है।
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